बायोडीजल : अपार संभावनाएं
1.0
आज पेट्रो पदार्थो के बढते मूल्य के कारण सभी चिन्तित है। खास कर भारत जैसे विकसनशील देश में जहाँ विकास की गति बढ रही है, वहाँ ऊर्जा की आवश्यकता और ऊर्जा आपूर्ति का प्रश्न देश के लिये अहम् हो गया है। आज हमारी 'टॉप टेन' प्राथमिकताओं में ऊर्जा आपूर्ति का मुद्दा आग्रिम है।
२.०
पेट्रो पदार्थों की बढती खपत भी पूरे संसार के लिये चिन्ता का विषय है - एक तो इसलिये कि इसके भंडार सीमित हैं - दूसरा इसलिये कि इनके कारण धरातल से ऊपर बसे हुए कार्बन के स्टॉक में लगातार बढोतरी हो रही है। जो कार्बन डायऑक्साइड बनकर ग्रीनहाऊस गैस इफेक्ट जैसा प्रतिकूल संकट पैदा करता है। इससे वायुमंडल का तापमान बढता जा रहा है, हिमखंड पिघल रहे हैं, और बाढ, तूफान जैसे तात्कालिक संकट उत्पन्न हो रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री के ग्लेशियर भी तेजी से पीछे हटते जा रहे हैं, यदि वे पिघल कर नष्ट हो गए तो एक समय वह भी आ सकता है, जब ये नदियां ही ना रहें, जिन्होंने हमारे देश को सुजलाम् सुफलाम् बनाया। त्सुनामी, रीता, कतरिना जैसे समुद्री बवंडर आते रहेंगे सो अलग।
ऐसे में हर देश ऊर्जा के वैकल्पिक ヒाोतों की तलाश में हैं। हमारे देश में जिन ヒाोतो पर तेजी से विचार और कार्य हो रहा है, उनमें सौर उर्जा पवन ऊर्जा, बायोडीजल, इथेनॉल, बायोगैस, कचरे से ऊर्जा आदि कई शामिल हैं।
३.०
संभावनाओं की दृष्टि से आँकने पर बायो डीजल सबसे प्रमुख रुप में उभरता है क्योंकि यह किसान के हाथ में है और देश के दस करोड से अधिक किसान बायोडीजल से लाभ पा सकते हैं।
४.०
हाल में पीसीआरए ने बायोडीजल से संबंधित एक 'शुद्ध वातावरण प्रकल्प' अर्थात सीडीएम् प्रोजेक्ट बनाया है जिसमें क्योटो या प्रोटोकोल के तहत प्रतिवर्ष पांच करोड रुपए पाये जा सकते हैं। इस प्रकल्प का अनुमानित गणित यों है कि करीब दस हजार किसान बीस हजार हेक्टर जमीन पर जट्रोफा के बीज उगाएंगें। इनसे करीब एक हजार घाणियों में तेल निकाला जायगा और करीब सौ केंद्रों में ट्रान्स-इस्टरीफिकेशन की विधि से बायोडीजल बनाया जायगा। प्रतिवर्ष अनुमानित पचीस हजार टन यानी तीन करोड लीटर बायोडीजल बनेगा। यानी इतने ही पेट्रोडीजल की बचत होगी। इस बचत के कारण जो वातावरण प्रदूषण रोका गया उसे कार्बन एमिशन रिडक्शन या क्कङ ईकाई में मापने पर करीब डेढ लाख ईकाई प्रदूषण की बचत होगी। प्रगत देश ऐसी प्रदूषण बचत ईकाईयाँ खरीदने के लिये ७ डॉलर से बीस डॉलर प्रति इकाई का भाव भी देते हैं।
पीसीआरए ऐसे दस हजार किसान, एक हजार घाणी धारक और एक सौ - बायोडीजल उत्पादकों का एक गुट बनाकर इस प्रकल्प के माध्यम से अपना दावा पेश करेगा और प्रकल्प के कार्यकाल में अर्थात् २०१२ मार्च तक प्रतिवर्ष कम से कम पांच करोड रुपये प्राप्त कर सकेगा। इसमें से किसान, घाणीधारक, और
बायोडीजल उत्पादक को लाभांश देने के साथ साथ बायोडीजल के प्रसार में जुटी अन्य संस्थाओं को भी लाभांश दिया जायगा। जैसे बैंक, मशीन उत्पादक, कृषि विद्यापीठों के अध्यापक, इत्यादि।
अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार यह प्रकल्प पहले अपने ही देश में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में जाँच व मान्यता के हेतु भेजने के बाद बायोडीजल की संभावनाएं स्पष्ट से स्पष्टतर होती चली गई। आज देश ऐसी स्थिती में हैं कि इस तरह का एक नही बल्कि सौ प्रकल्प भी बनाकर अंतर्राष्ट्रीय सीडीएम बाजार में दाखिल किये जा सकते हैं। एक सौ, दो सौ, गांवो के किसान मिलकर दस - बीस हजार हेक्टर पर रतनज्योत या करंज के बीज उगाकर प्रकल्प पेश करना चाहें तो कर सकते हैं। वर्तमान में विभिन्न राज्यों में बोयोडीडल की बाबत जो भी जन - मुहिम है, या रतनज्योत खेती की शुरुआत है, और सरकार की तैयारी है इसे देखते हुए पीसीआरए में हमने अनुमान लगाया कि आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ, गुजरात, हरियाणा में ऐसे पांच - पांच प्रकल्प
और बाकी राज्यों में भी दो - चार प्रकल्प बन सकते हैं। सौ प्रकल्पों में कुल बीस-पचीस लाख टन बायोडीजल उत्पादन की क्षमता होगी, जिसका कारोबार सात-आठ हजार करोड रुपये तक जा सकता है।
अर्थात आठ हजार करोड रुपये का कारोबार, चार-पांच सौ करोड रुपये की अतिरिक्त आमदनी जो प्रदूषण बचत इकाइयों से आयेगी, बीस लाख हेक्टर जमीन पर बायोडीजल की खेती - ये सारे आंकडे दो बातो की ओर संकेत करते हैं - कि यह एक अनूठी क्रांति का रुप ले सकता है। जैसे देश में पहले हरित क्रान्ति आई, फिर दूध का व्यापार बढा जिसे श्र्वेत क्रान्ति कहा गया। इसी प्रकार एक सुनहरी क्रान्ति दस्तक दे रही है। एक बायोडीजल कार्पोरेशन बन जाये तो यह क्रान्ति और भी तेजी सी लाई जा सकती है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब इतनी बडी लागत की बात होती है, तो विभिन्न ग्रुपों को इसके लिये तैयार करना पडता है - उनकी क्षमता बढाने के लिये प्रयास करने पडते हैं। ऐसे कई प्रयास भी करने पडेंगे - किसान, मशीन लगाने वाले, मशीन बनाने वाले, रिसर्च करने वाले, बैंक, यहाँ तक कि निति निर्धारण करने वाले नेता व प्रशासक तथा मीडीया इत्यादि सबके लिये विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम करने पडेंगे। विभिन्न शोधसंस्थाओं के शोध कार्य और शोध निबंधो को भी लोगों तक पहुँचाना होगा। कई शोध कार्य करवाने होंगे। इन सब के लिये कुछ तो लागत करनी पडेगी।
६.०
केन्द्र सरकार ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को इस काम के लिये सूत्रधार मंत्रालय के रुप में नियुक्त किया है। विभिन्न राज्यों के संबंधित मंत्रालय भी इस प्रकार के क्षमता मूलक कार्यक्रम कर सकते है। यदि हम आठ दस हजार करोड के कारोबार की बात कर रहे हे, तो ऐसे क्षमता मूलक कार्यक्रम के लिये सौ करोड का खर्च भी जायज हो जाता है। ऐसे कार्यक्रमों के लिये ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायत राज्य मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, अपांरपरिक ऊर्जा मंत्रालय, योजना आयोग जैसी हस्तियाँ आगे आ रही हैं।
७.०
किसानों और ग्रामीण रोजगार की दृष्टि से देखने पर बायोडीजल कार्यक्रम की कई खूबियाँ नजर आती हैं।
बायोडीडल को स्टोअर कर रखा जा सकता है, जबकि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा या पनबिजली को स्टोअर नही किया जा सकता है।
डीजल पम्प, ट्रैक्टर, एक ट्रक, बस इत्यादि में इसे आसानी से मिलाया जा सकता है। अब तक किये गये
प्रयोग बताते हैं कि पांच से दस प्रतिशत बायोडीजल मिलाया जाय तो वह पूर्णतः सुरक्षित है। ये प्रयोग इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के अनुसंधान विभाग तथा अन्य कुछ कृषि विद्यापीठों ने किये हैं। पांच प्रतिशत बोयोडीजल से इंडियन ऑयल ने पांच दिनों तक लखनऊ - दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस चलवाई और अब एक पूरी मालगाडी एक साल तक चलवाने जा रहे हैं। साथ ही हरियाणा रोडवेज की बीस बसें भी चलवा रहे हैं। भारत पेट्रोलियम ने गुजरात स्टेट की बसें - चलवाईं जब कि हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने मुंबई मे बेस्ट बसेस चलवाईं। अब इन सारी तसल्लियों के बाद पेट्रोलियम मंत्रालय ने घोषणा कर दी है कि पचीस रुपये लीटर की कीमत पर जो भी बायोडीजल बेचना चाहे, तेल कंपनियाँ इसे खरीदेंगी। यह व्यवस्था 1 जनवरी २००६ से लागू होगी। इसके लिये देश भर के बीस मार्केटिंग टर्मिनल्स पर बायोडीजल खरीदने की, उसकी शुद्धता के जाँच की, भंडारण की और डीजल के साथ मिश्रण बनाने की व्यवस्था की जायगी। लेकिन बेचने वाले को एक टैंकर लोड यानी करीब .... टन बायोडीजल एक बार में लाना पडेगा, ताकि शुद्धता की जाँच परख का काम बार
बार न करना पडे।
इससे पहले भी सरकारने पेट्रोल में अल्कोहल के मिश्रण के लिये व्यवस्था की थी। लेकिन पेट्रोल अधिक ज्वलनशील है इसलिये उसके साथ मिश्रण करने में अधिक एहतिहयात बरतना पडता है, जबकि डीजल में बायोडीजल मिलाना अधिक आसान है। उपभोक्ता खुद भी यह कर सकता है। लेकिन उसके पास शुद्धता की कोई गैरंटी या जाँच परख का तरीका नही होगा।
८.०
आज भी हरियाणा के कई किसान रतनज्योत के तेल से और आंध्र के किसान करंज के तेल से खेती के पम्प और ट्रैक्टर चला रहे हैं। तेल निकालने के लिये गांव की उन्हीं घाणियों का उपयोग किया जाता है, जिसमें गांव के लिये सरसों, मूंगफली या अन्य तिलहनों के तेल निकालते हैं। चूंकि रतनज्योत या करंज का तेल अखाद्य है, इसलिये बाद में आधा किलो सरसों पिसाने से घाणी फिर स्वच्छ होकर खाद्य तेल के लायक बन जाती है। वह आधा किलो सरसों तेल भी रतनज्योत तेल में मिला लिया जाता है।
इस तेल को सीधे ट्रैक्टर में नही डाला जा सकता। लेकिन तीन चार दिन धूप में रखने से इसकी गाज नीचे बैठने लगती है और ऊपर से सुनहरे रंग का तेल निथार लिया जाता है। इससे तेल के अन्दर जो भी गोंद बनाने वाले तत्व हैं, वे काफी हद् तक निकल जाते हैं। कुछ और भी रासायनिक गुण बदलते होंगे।
हालांकि अब तक किसी वैज्ञानिक संस्था ने इस प्रकार का शोध कार्य हाथ में नहीं लिया है कि उपरोक्त विधि से प्राप्त सूर्यस्पर्शित तेल के गुण क्या हैं और विभिन्न मशीनों पर उसका असर क्या पडता है। फिर भी एक हरियाणा और आंध्र के किसान बताते हैं कि खालिस तेल के प्रयोग से उनके मशीनों को कोई नुकसान नही हो रहा, एक लिटर डीजल की जगह सात सौ मिलीलीटर बायोडीजल में काम चल जाता है, मशीन से कोई धुआं या बदबू नही निकलती, मशीन की तंदुरुस्ती अधिक अच्छी रहती है - ये सब हैं उनके अनुभव जिसके लिये सुनियोजित प्रयोग कर परीक्षण करना आवश्यक है। दूसरी ओर हैं वैज्ञानिक जो मानते हैं कि बिना बायोडीजल बनाए खालिस तेल को प्रयोग करने से मशीन को नुकसान हो सकता है। इसलिये तमान वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर लगा है कि बायोडीजल बनाने की प्रक्रिया अर्थात् ट्रान्सईस्टरीफिकेशन की बाबत ऐसे में अधिक अनुसंधान करें। ऐसे में खालिस तेल पर अनुसंधान भी आवश्यक हैं।
९.०
बहरहाल ट्रान्सइस्टीफिकेशम की प्रक्रिया भी कोई महाकठिन नही है। रतनज्यात तेल, मिथेनॉल और कॉस्टिक सोडा के मिश्रण को तीन - चार घंटे तक गर्म करते हैं और बाद में दो - तीन घंटे ठंडा होने पर तेल की जगह बायोडीजल और मिथेनॉल की जगह ग्लिसरॉल बन जाता है जो एक दूसरे से अलग हो जाते है और बायोडीजल को निथार लिया जाता है ।
अब वैज्ञानिक तो इस खोज में लगे हैं कि यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर करने लायक मशीन्स व यंत्र बना सकें। सो किसी ने प्रतिदिन दस लीटर का, किसी ने सौ का और किसी ने एक टन का संयंत्र विकसित कर लिया है । कुछ लोग विदेशों से लाकर बड़े संयत्र लगा रहे हैं जिसमें दस से पचास टन बायोडीजल बन सके। कुछ विदेशी कंपनियां प्रतिदिन तीन सौ टन वाले संयंत्रों की बात करती हैं । दूसरी ओर किसान अपने खलिहान में ही छोटे चूल्हे पर इस तरह मिश्रण को गर्म करन बायोडीजल बना रहे हैं । तात्पर्य यह है कि
हमारे देश की विभिन्नताओं को देखते हुए आज की तारीख में यह बहुत सिर खपाने वाला प्रश्न नहीं है कि बायोडीजल उत्पादन के लिये कितने बडे पैमाने का संयत्र लगाया जाये । यह प्रश्न शायद अगले पांच-दस वर्षों के बाद महत्वपूर्ण होगा ।
१०.०
बायोडीजल का कारोबार बढे इसके लिये सरकार की तरफ से चार मुद्दों पर नीति निर्धारण की आवश्यकता है । पहला मुद्दा था न्यूनतम मूल्य निर्धारण - जो हर छह महीने में आवश्यकतानुसार बढाया या घटाया जा सके। न्यूनतम मूल्य उतना ही रखना पडेगा जिस भाव में तेल रिफाइनरी कंपनियो को को डीजल का भाव पडता है । उदाहरण के लिये एक अक्टूबर को क्रूड ऑयल का दाम प्रति बैरल? डॉलर, अर्थात् प्रति लीटर? रुपये था । इससे रिफायनरी में डीजल बनाने पर उत्पादक कंपनी को डीजल पडता है पचीस रुपये प्रति लीटर - जिसे रिफायनरी गेट प्राइस कहते हैं । फिर इसकी ढुलाई, भंडारण, वितरण, लाभांश, सरकारी टैक्स आदि सारे खर्च मिलाकर ग्राहक को यही डीजल तैंतीस रुपये प्रति लीटर के भाव पडता है । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत दो डॉलर से बढ जाये तो डीजल की रिफायनरी गेट प्राइस एक रुपये प्रति लीटर बढ जाती है ।
इन्हीं मुद्दों को ध्यान मे रखकर सरकार भविष्य में बायोडीजल के खरीद की दर तय करेगी ।
११.०
नीति निर्धारण में दूसरा मुद्दा है टैक्स का । आज की तारीख में खाद्य तेल पर कोई टैक्स नहीं है और सेल्स टैक्स है केवल चार प्रतिशत । वही टैक्स नीती अखाद्य तेल पर भी लागू हो सकती है। बायोडीजल के कारोबार को प्रारंभिक वर्षों मे संबल देने के लिये यह आवश्यक है कि सरकार इसे टैक्स से राहत दिलाये। कुछ ऐसे कदम गुजरात सरकार उठा चुकी है । केंद्र सरकार भी अगले तीन पांच वर्षों तक टैक्स राहत दे सकती है। इसके अंतर्गत - एक्साइज से राहत और केवल चार प्रतिशत सेल्स टैक्स - ये दो सुविधाएँ उसे मिले जो बायोडीजल का उत्पादन कर रहा है। साथ ही तेल कंपनियों को भी यह राहत होनी चाहिए कि जब वें पच्चान्यबें लीटर डीजल में पांच लीटर बायोडीजल मिलायें तो उन्हें केवल पच्चान्यबें लीटर पर ही सेल्स टैक्स देना पडे, ना कि सौ लीटर पर। इससे तेल कंपनियों को बायोडीजल
पर जो भी हँडलिंग खर्च आ रहा है उसकी भरपाई होगी वह बचेगा और वे अधिक बायोडीजल खरीदने के लिए उत्सुक होंगी ।
१२.०
इन दो छोटे मुद्दों के बाद नीति निर्धारण जो का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा उठता है - वह है बायोडीजल को बाजार में प्रस्थापित करने का। तीन वर्ष पूर्व जब सरकार ने बायोडीजल मिशन बनाया, तब इस से अब तक विषय में कई जगह अलग अलग प्रकार के काम संपन्न हुए। लेकिन इसे बाजार में उतारना हो तो निरंतर उत्पादन और खरीद, दोनों आवश्यक हैं। तभी कीमतें अपने स्वाभाविक रुप में आ सकती हैं। पिछले वर्ष तक रतनजोत तेल या बायोडीजल का उत्पादन और उपयोग दोनों ही फुटकर रुप में होते रहे। केवल तीनों तेल कंपनियों ने कुल मिलाकर सौ टन बायोडीजल अपने प्रयोगों के लिये खरीदा। वह भी टेण्डर इत्यादि लम्बी कार्यप्रणाली को पार करते हुए। यह बायोडीजल भी पड़ा ५५ रुपये से लेकर ८५ रुपये प्रति लीटर के भाव । कारण यह था कि पिछले वर्ष तक किसी ने बायोडीजल के निरंतर उत्पादन की बात नही सोची। जिसने यंत्र लगाए भी हैं वे पांच-छः टन उत्पादन करके रुक जाते हैं, वह बिक जाय तो फिर आगे का सोचते हैं । इसलिए जब तक सप्लाई चेन की निरंतरता नहीं बन पाती तब तक बायोडीजल का दाम बढ चढ कर
ही रहेगा । तब तक तेल कंपनियाँ बडे पैमाने पर इसे खरीदने से कतराती रहेंगी । निरंतर खरीदारी नही हुई तो निरंतर उत्पादन भी शुरु नही होगा । यह दुष्ट चक्र इस प्रकार चलना रहेगा ।
इसे भेदने की यह नीति हो कि सरकार आरंभिक वर्षों के लिए बायोडीजल पर कुछ सब्सिडी दे। कुछ वर्ष पहले जब डीजल का दाम बहुत कम था, और क्रूड ऑयल के एक बैरल की कीमत मात्र बीस डॉलर थी, तब बायोडीजल की बात बेमानी थी। लेकिन आज क्रूड के बढते दामों ने डीजल को तीस रुपये लीटर के कगार पर ला दिया है । भला हो किसानों का जिनके प्रयासों के कारण बायोडीजल का माहौल बना और अब कई उत्पादकों ने पीसीआरए को बनाया है कि वे तैंतीस रुपये प्रति लीटर से बायोडीजल बेचने को तैयार हैं। इस प्रकार दोनों डीजलों की कीमत एक दूसरे के इतने निकट आ गई हैं, जहाँ थोड़ी सी सब्सिडी मिलने पर बायोडीजल का कारोबार जड़ पकड़ कर तत्काल फल - फूल सकता है।
डीजल की रिफायनरी गेट प्राइस पचीस रुपये और डीजल उत्पादक द्वारा प्रस्तावित बिक्री मूल्य तैंतीस रुपये का गणित बैठाकर पीसीआरए ने हिसाब लगाया है कि अगले छः, छः, छः महीने तक बायोडीजल पर क्रमशः आठ रुपये, पांच रुपये और तीन रुपये की सब्सिडी - घोषित की जाये तो उन अठारह महीनों में अनुमानित बिक्री क्रमश : २ हजार टन, ८ हजार टन और १५ हजार टन होगी । इस प्रकार पचीस हजार टन के कारोबर के लिये सब्सिडी की रकम करीब दस करोड़ की होगी । इससे कारोबार को जो तीव्र गति मिलेगी, उसे देखते हुए यह रकम कोई बहुत बड़ी नही है ।
१३.०
जब देश में ओएनजीसी जैसा बड़ा कमिशन बनाया गया (१९५६) या इंडियन ऑयल कार्पोरेशन बना (१९६४) तब भी देश के सामने ऊर्जा स्वाबलंबन का मुद्दा प्रमुख था जिस कारण इन दोनों संस्थाओं में सरकार ने भारी मात्रा में निवेश किया । तब जाकर तीन-चार वर्षों में ऐसी स्थिती बनी कि क्रूड का उत्पादन और रिफायनिंग हमारे अपने बल बूते पर संभव हो सका और देश में ईंधन की आपूर्ति बढ़ी। आज फिर हमारे देश के लिये ऊर्जा आपूर्ति का बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ है। ऐसे समय बायोडीजल जैसे विकल्प पर अभी से ध्यान देना और खर्च करना उचित है ताकि अगले एक-दो वर्षों में यह कारोबार चल निकले और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड का दाम बढे तब हम उसे धता बनाकर अपने रास्ते पर चल निकलें।
१४.०
सब्सिडी के ही मुद्दे के साथ किसान की लागत और उसे मिलने वाली आय का भी गणित आवश्यक हो जाता है। विदेशों में जहाँ खाद्य तेल बीजों से बायोडीजल बनाया जाता है वहाँ उनके पास सोयाबीन, राई, मूंगफली, सूर्यमुखी, आदि कई विकल्प हैं। इनकी सघन खेती हो सकती है जो तीन-चार माह में फसल दे देती है। लेकिन अपने देश में खाद्य तेल लोगों के खाने के लिये ही पूरा नहीं पड़ता। सो इसे ईंधन के लिये लगाया नही जा सकता। इसी से हमें अखाद्य तेल बीजों का विकल्प ढूंढना पड़ता है। इसके लिये रतनज्योत, करंज, महुआ, नीम जैसे पेड़ उपयुक्त हैं, और हमारे देश में सदियों से बहुयात में हैं। लेकिन उनकी फसल देर से आयेगी। सबसे जल्दी आनेवाले रतनज्योत के लिये भी तीन वर्ष का समय चाहिये। दूसरा पहलू देखें तो एक बार इसकी सघन खेती कर लेने पर अगले तीस - चालीस वर्ष तक इसके फल बीज उगते रहेंगे। करंज इत्यादि बाकी प्रजातियाँ बडे वृक्ष की श्रेणी में आते हैं, उनके बीज आने में पांच वर्ष लग जाते हैं, और उनकी आयु भी सौ वर्षों से अधिक होती है - सो वे सघन खेती के रूप में नही बल्कि खेत की मींड़ पर, साथ ही राजमार्ग के दोनों ओर या वनभूमि पर लगाये जा सकते हैं। रतनज्योत दोनों तरह से उपयुक्त है। यह करीब तीन-चार मीटर ही ऊँचा है जिससे फल तोड़ना या छांटना आसान हो जाता है। हर गांव में जो भी बंजर जमीन है उस पर लगाने के लिये यह अत्यंत उपयोगी है। टिश्यू कल्वार के माध्यम से इसकी पहली फसल तीन के बजाय डेढ वर्ष में भी पाई जा सकती है।
१५.०
जिसे रतनज्योत की सघन खेती करनी हो उसके लिये तीन बातें आवश्यक हैं - पहली है अच्छे किस्म के बीज जिसके लिये किसी कृषि विद्यापीठ की राय लेनी चाहिये। कुछ विद्यापीठों ने डेमान्स्ट्रेशन प्लॉट्स किये हैं उन्हें देखकर खाद, पानी इत्यादि के साथ इंटरक्रापिंग के तौर तरीके भी जानने चाहिये। छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर टमाटर, गेहूँ, पुदीना, ब्राहमी, सफेद मूसली जैसी फसलें रतनज्योत के साथ लगाई जा रही हैं। साथ ही बीज बेचने की सुविधा नर्सरी टिश्यू कल्चर और बैंक से कर्जा मिलने की सुविधा की भी जानकारी आवश्यक है।
१६.०
गाँवों में इस प्रकार जो अखाद्य तेलबीज उगेंगे, उन्हें इकठ्ठा करना, छिलके उतारना और घाणी से तेल निकालने का व्यवसाय किया गांव में ही किया जा सकता है। इसके अलावा बायोडीजल बनाने का लघुउद्योग भी आरंभ किया जा सकता है जिसके लिये छोटे यंत्र भी उपलब्ध हैं। दो अन्य व्यवसाय भी शुरू किये जा सकते हैं। भविष्य में जहाँ कहीं बायोडीजल बनेगा वहीं उसकी शुद्धता परखने की बात उठेगी। इस जाँच में मुख्यतः पांच बातें देखी जाती हैं - ज्वलन बिंदु, कॉपर कोटोजन अर्थात् तांबा क्षति का दोष (अधिक आम्लना हो ता यह मशीनों में लगे ताबें के पुर्जों का नुकसान पहुँचायेगा) इत्यादि। इस तरह के जाँच की सुविधा भी व्यवसाय के तौर पर तहसील या जिला स्तर पर मुहैया कराई जा सकती है। नर्सरी तथा टिश्यू कल्चर भी व्यवसाय बन चुके हैं।
१७.०
आज किसान खेती के पम्प में डीजल की जगह रतनज्योत तेल डाल ही रहे हैं। इसी बात को आगे बढाते हुए गांव में छोटे पैमाने पर बिजली उत्पादन भी आरंभ किया जा सकता है। इसके लिये सीधा रतनज्योत तेल इस्तेमाल करना कहां तक सफल होगा? यह शोध कार्य छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में शुरू हो चुका है और बायोडीजल आधारित बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन का गणित भी किया जाने लगा है। प्रतिदिन ,, टन बायोडीजन की खपत से ,,,, मेगावाट बिजली उत्पादन का प्रकल्प आरंभ करने का प्लान गढ़ा जा रहा है।
१८.०
ये सारी संभावनाएँ इसलिये उपलब्ध हैं कि बायोडीजल कई विकल्प प्रस्तुत करता है। खेत की मेड़ों पर लगाना हो, जंगल में उपजाना हो, बंजर जमीन में लगाना हो या सघन खेती करनी हो रतनज्योत हर तरह से काम आयेगा। यह समूचे देशभर की तमाम जलवायुओं में उगाया जा सकता है। इसके साथ दूसरी फसलें लगाई जा सकती हैं। हाँ -- रतनज्योत आवश्यक मात्रा में उपलब्ध न हो वहॉ करंज इत्यादि बीजो से आपूर्ति की जा सकती है। बायोडीजल बनाने के बजाय केवल सूर्यस्पर्शना प्रक्रिया से काम चलाया जा सकता है। बायोडीजल बनाना हो तो लघु उद्योग, मध्यम उद्योग और बडे उद्योग - तीनों विकल्प आज उचित हैं। परिवहन के लिए अर्थात् बस, ट्रक, ट्रॅक्टर और कारों में काम आयेगा तो उधर खेती का पम्प चलाने, बिजली बनाने और उद्योगों मे डिजल के विकल्प के रूप में भी काम आ सकता है। बडे पैमाने पर उत्पादन करने के लिये में आवश्यक मात्रा में बीज न मिले तो अन्य पर्याय भी हैं। उदाहरण के लिये बडे होटलों की रसोई के बाद अधजला हुआ तेल, पाम ऑयल खाद्य तेल के शुद्धिकरण से बची हुई गाज - जो आज खली बनाने के काम आती हैं - इत्यादी का तात्कालिक उपाय किया जा सकते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ओर जहाँ अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों की तुलना में बायोडीजल की संभावनाएॅ अधिक हैं, वही दूसरी ओर यह पूर्णतया कृषि-उन्मुखी कार्यक्रम है जो किसान के हाथ में रहेगा।
१९. आज हम लगभग एक सौ बीस हजार करोड रूपये का क्रूड आयात करते हैं। इसमें सें पॉच प्रतिशत यानी केवल छ हजार करोड रूपये का कारोबार भी यदि देश के किसान के हाथ आ जाय तो देश का चेहरा चमक उठेगा। इसलिये आवश्यक है कि इस संभावित छ हजार करोड रूपये के कारोबार को ध्यान मे रखकर केन्द्र सरकार क्षमता-वृध्दि यानी कपैसिटी बिल्डिंग के उपाय तत्काल आरंभ करे। सौ दो सौ करोड के आसपास बजट खर्च करे। जिसमें किसानों का प्रशिक्षण, कृषि विधापीठों के प्रयोग, बीज- गुणन, पौधवाटिका, मशीनों के प्रयोग, बैंक और सरकारी अधिकारियों का प्रशिक्षण, यंत्र बनाने वाले उद्यमियो का प्रशिक्षण, बिजली उत्पादन, ल्युब्रिकेशन, साथ ही बायोडीजल उत्पादन प्रक्रिया में शोधकार्य इत्यादि कई काम तत्काल और विस्तृत स्तर पर हाथ में लेना आवश्यक है।
२०. थोडे शब्दों मे यदि सरकार वास्तव में एक मिशन बनाकर उसे सौ- दो सौ करोड का एक बीज-धन फंड दे दे, तो कुछ ही वर्षों मे वह बीज एक बडे वृक्ष के रूप मे आठ दस हजार करोड का कारोबार करेगा, शायद हम अपना बायोडीजल निर्यात भी कर सकेंगे। देश से बाहर जाने वाला पैसा देश के अंदर रहा तो किसान समृध्द होंगे और किसानों का नारा- कि अब तेल खाडी से नही झाडी से- सर्वथा सार्थक सिध्द होगा।
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NOVEMBER 6, 2005 business today
MANI'S DIKTAT
Agreed that biodiesel
is the need of the hour. But the Union Petroleum Minister Mani Shankar Aiyar's
diktat to public sector oil companies to start buying biodiesel to blend with
their regular diesel (in a 5:95 ratio) has left them in a bind. "Even if
we were to blend only 5 per cent of biodiesel, we will need more than 20 lakh
tonnes per annum," says a senior executive in an oil company. India has an installed biodiesel capacity of 50 tonnes a
day. But Leena Mehendale, Joint Secretary, Petroleum Ministry and Executive
Director of Petroleum Conservation Research Association, says that demand, and
not supply is the issue. "Once the oil companies start buying (biodiesel)
on a regular basis, the capacities will be increased," she says. Quality
is another issue. If biodiesel were to be sourced from disparate sources around
the country, monitoring and ensuring quality will be near impossible. "Oil
companies will have to install the equipment to check the standard of
supplies," says Mehendale. There's hope for the biodiesel advocates yet.
There's a lot of global interest in the sector. The UK 's d1 Oils, for instance, plans to set up an
8,000-tonnes-a-year biodiesel refinery near Chennai by next year
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MANI'S DIKTAT
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Petroleum Minister
Aiyar:
Just blend it
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