14 सितम्बर, 2009
---- श्रीमति प्रज्ञा शुक्ल
आदरणीय मंच एवं दीर्घा में उपस्थित आप सब को नमस्कार |
साहित्यकार अपने परिवेश की ही पौध होता है | वह अपने जीवनमें आसपासके, विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक स्थितियों, संस्कारों एवं मूल्यों रूपी हवा, पानी एवं स्वाद से अपने व्यक्तित्व-रुपी पौधे को एक वटवृक्ष के रुप में विकसित करता है | प्रेमचन्द का कथन है कि साहित्य अपने काल का प्रतिबिम्ब होता है, जो भाव और विचार लोगों के ह्दयों को स्पंन्दित करते हैं, वही साहित्य पर भी अपनी छाया डालते हैं | अत: साहित्यकार अपने परिवेशसे एवं उसके साहित्य-परिवेशगत संवेदनाओंसे प्रभावित होता है |
श्रीमती लीना मेहेंदले की पुस्तक मेरी प्रांतसाहबी लीनाजी के बहुमुरबी व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है | इस पुस्तक में समाविष्ट 11 लेख उनके आसपास घटित घटनाओं पर उनके वाचन, मनन और चिंतन की अभिव्यक्ति है| ठोस सामाजिक मुद्दों पर विवेचना लीनाजीके लेखन का सबसे सशक्त माध्यम है| फिजिक्स की प्रवक्ता से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के विभिन्न पदों पर कार्यरत लीनाजी का मातृभाषा मराठी एवं हिन्दी दोनों पर समान अधिकार है जिसका उन्होंने लेखन एवं अनुवाद के द्बारा रचनात्मक रूपसे भरपूर उपयोग किया है | देश की विभिन्न समस्याओं, घटनाओं, सामयिक स्थितियों नें लीनाजी को प्रभावित किया है | उनके प्रति जागरुकता दर्शाकर उन्हें सुधारने की दिशा में लीनाजी निरंतर कार्यरत एवं चिंतनरत है |
लीनाजी का लेखन केवल किसी हकीकत का सीधा सपाट बयान नहीं है परंतु उसमें वे अपने चिंतन के अमूल्य मोती भी पिरोती जाती हैं | सामान्य पाठक की जानकारी हेतु विभिन्न मुद्दों पर छोटी-छोटी टिप्पणी भी करती चलती हैं | इस पुस्तक का शीर्षक है मेरी प्रांतसाहबी | इसी शीर्षक से 41 पृष्ठों का एक आत्मकथ्यात्मक लेख है जिसमें उनके प्रशासकीय जीवन के आरंभिक अनुभव समाविष्ट हैं | असिस्टंट कलेक्टर, सब-डिविजनल ऑफिसर, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के लिए महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में प्रांतसाहब संबोधन अधिक परिचित है अत: शीर्षक है मेरी प्रांतसाहबी | इसमें लीनाजी ने अपने प्रशिक्षण एवं कार्यकाल के दौरान जो गुर सीखे, अपने पिता एवं पति के घड़ी के साथ जुड़े कार्यक्षेत्र की तुलना में अपनी चौबीस घंटोंकी डयूटी का तालमेल, अन्य अधिकारियों से प्राप्त प्रेरणा, अपने स्त्री होने के कारण प्रांतसाहब के समक्ष आनेवाली समस्याऐं एवं दायित्व, एक सजग अधिकारी के रूप में अपनी कार्यकुशलता, विवेकबुध्दि का उपयोग, शासन प्रणाली की कमजोरी एवं महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में प्रगति की धीमी गतिसे चिंतित लीनाजी का विचारोत्तेजक एवं दूरदर्शी रूप उभरता है |
महिला संशक्तिकरण एवं महिलाओं के साथ होनेवाले अत्याचार, उनकी हत्यासे आनेवाली पीढ़ी के लिए एवं देश में स्त्रियों की स्थिति के लिए लीनाजी की चिंता व्यक्त होती है | वे मानती हैं कि अपराधी को तत्परता से सजा नहीं दिए जाने के लिए हमारी ढीली दंड-प्रक्रिया और न्यायिक कार्यवाही जिम्मेदार है | “विभिन्न राज्यों में महिला विरोधी अपराधों का विश्लेषण”, “राजस्थान : कहाँ है जनमने और पढ़ने का हक”, “महिला सशक्तिकरण की दिशा में”, तथा “उन्मुक्त आनंद का फलसफा” जैसे लेख लीनाजी की महिला विषयक गहरी सोच और सरोकार का परिचय देते हैं | “व्यवस्था की एक और विफलता” लेख हमारी कमजोर पड़ती शासन व्यवस्था का पर्दाफाश करता है | वे मानती हैं पेपरलीक का उपाय परीक्षा पद्धति में बदलाव एवं कम्प्युटर के सही उपयोग द्बारा संभव है |
हिन्दी भाषा के प्रति लीनाजी का लगाव और चिंता उनके भाषा विषयक लेख दर्शाते हैं | हिन्दी एवं भारतीय भाषाएँ एक-दूसरे से जुड़कर ही अपना भविष्य संवार सकती हैं | आज तक हम हिन्दी को संयुक्त राष्ट्रसंघ में मान्यता नहीं दिला पाए इसके लिए वे राजनेता एवं हिन्दी साहित्यकारोंको जिम्मेदार ठहराती हैं | सुरीनामियों की भाषाविषयक चिंताको लीनाजी हमारी भाषाविषयक चिंता से जोड़कर देखती हैं |
गो.नि.दांडेकर संस्मरण में उनके लेखनकी विशेषताओं का उल्लेख है तो कुसुमाग्रज की कविताओं के अनुवाद को वे एक सागर मथनेके समान मानती हैं | डॉ.राज बुध्दिराजा लेख में भारतीय समाज में पुत्र और पुत्री के बीच भेदभाव का मर्मस्पर्शी चित्रण है | भगवद्गीता से प्रभावित लीनाजीने उसमें वर्णित बुद्धियोग की विस्तार से चर्चा की है |
नकली स्टॅम्प पेपर बनानेका करोबार चलानेवाला एक सामान्य स्टॅम्प वेन्डर तेलगी जब पूरे देश की प्रभुसत्ता के साथ खिलवाड़ करता है तो एक प्रशासक एवं जिम्मेदार नागरिक के रुप में लीनाजी का खून खौल उठता है | मतपत्रिका में नापसंदगी जताने की सुविधा के विषय में जब चुनाव आयोग ने कहा कि अभी हम इसके लिए तैयार नहीं हैं तो लीनाजी सवाल उठाती हैं कि क्या डर है चुनाव आयोग या प्रशासन या संसद-मंडल को ? कहीं यह डर लोगों की मुखरता का तो नहीं ?
बायोडीजn -अपार संभावनाएँ उनका भविष्यदर्शी चिंतनपरक लेख है | दिल्ली में स्थित खाली पड़ी अगस्तक्रांति भवन की इमारत विषयक लेख में कार्यालयों मे छुट्टी के माध्यम से राष्ट्रीय सँपत्ति गंवाने के बारे में लीनाजी ने चिंता प्रकट की है | इस पुस्तक का अंतिम लेख मालूम ही नहीं कि सुभाष स्वतंत्रता सेनानी थे सरकारी फाइलों के रिकार्ड पर करारा व्यंग्य है |
कुल मिलाकर मेरी प्रांतसाहबी पुस्तक लीनाजी के व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन, उनके हर्ष-शोक, संयुक्त कुटुंब पद्धति के लाभ, एक कुशल एवं कर्मनिष्ठ प्रशासक के जीवन की विभिन्न घटनाओं एवं भाषा, समाज, प्रशासन, व देश के प्रति चिंतन का प्रामाणिक दस्तावेज है |
धन्यवाद
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- Satyajit Narayan Singh Congrats for the book Meri Prantsahabi. I wish i could get the chance to read the book.
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