शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

20 क्या भारतीय प्रशासनिक सेवाएं गैर जरूरी बन गई है?

अपने पेशे से गंभीरता से जुड़े जन समय समय पर उस पेशे को लेकर गंभीर आत्मनिरीक्षण को बाध्य होते हैं। १९९६ के इस मोड़ पर जब राज्य तथा संसद, संसद तथा जनता, केंद्र और प्रांत सभी के संबंधों पर महत्वपूर्ण नए सोच- विचार सामने आ रहे हैं,यह अनिवार्य बनता हैंकि प्रशासनिक ढांचे की मार्फत तमाम नई नीतियों को अमली जामा पहनाने वाले तंत्र, यानी प्रशासनिक सेवाओं की गुणवत्ता और उपयोगिता पर भी बेबाकी से विचार हो। एक वरिष्ठ सेवा अधिकारी का यह आलेख उसी दिशा में एक प्रयास है
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भारतीय प्रशासनिक सेवा(पहले इसे आई.सी.एस. कहा जाता था,बाद में इसे संशोधित करके
नया नाम आई.ए. एस.दिया गया)ब्रितानी राज द्वारा पीछे छोड़ी गई कई व्यवस्थाओं में से एक
है। इसे नौकरशाही की मलाई क्रीम या उसका चरम बिंदु माना जाता है। क्योंकि इस सेवा के
सदस्य अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिये चुने जाते है। अगर इसके चयन का औसत सालाना पॉच लाख से भी ज्यादा उम्मीदवारों में से एक सौ का है तो इसे पास कर
पाने में वास्तव में विशेष योग्यता की जरूरत है।इसी परीक्षा से पुलिस राजस्व,आयकर,रेलवे,
डाक सेवा,अंकेक्षण,लेखा परीक्षण आदि समेत दूसरे लगभग नौ सौ उम्मीदवार चुने जाते है।

पिछले दिनों ब्रितानी राज की कई व्यवस्थाओं की काफी आलोचना हुई है जो सही है। इसलिए
पाठकों को अपने महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक की नसीहत को जो उन्होने एक बेहतरीन आई.सी.एस. अधिकारी सी.डी. देशमुख को दी थी, याद दिलाना उचित होगा।
श्री देशमुख आई.सी.एस.में चुने तो गए लेकिन उन्होने इस नौकरी के प्रति अनिच्छा और अपने
को स्वतंत्रतासंग्राम में ही जुटे रहने की इच्छा जताई। उस वक्त श्री तिलक ने उन्हें समझाया-
स्वराज अब बहुत दिनों की बात नहीं रह गई है।जब भारत इसे प्राप्त कर लेता है तो हमें योग्य प्रशासकों की जरूरत पड़ेगी। आप जाइए और प्रशासन की कला और नियमों को सीखिए ताकि भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके। लोकमान्य तिलक की यह दूरदर्शिता
आई.ए.एस.से ब्रितानी राज का पूरा लांछन खत्म करने को काफी थी। आई.ए.एस. की वैसी
छवि जिसकी लोकमान्य तिलक या सी.डी. देशमुख ने परिकल्पना की थी,पिछले पैंतालीस साल
से नहीं रह पाई है। इसके कारणों की जांच हम बाद में करेंगे।

जैसा कि उनके नाम से ही लगता है कि दूसरी हरेक अखिल भारतीय सेवा किसी एक खास
विषय से संबंधित होती है और इसके सदस्य जल्दी ही उस विषय की विशेषज्ञता हासिल कर
लेते है।पुलिस,डाकसेवा, अंकेक्षण आयकर आदि के संदर्भ में भी यह बात सच है। दूसरे तकनीकी सेवाओं जैसे-इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कृषि,अंतरिक्ष विशेषज्ञों आदि के संदर्भ में भी
यह सच है। पहले इन सभी सेवाओं के सर्वोच्च पदों पर कोई आई. ए. एस. अफसर ही आसीन होता था। धीरे धीरे कई विभागों ने दावा करके उसी सेवा के अधिकारियों ने विभाग के
सर्वोच्च पद पर बैठना शुरू किया और इस तरह आई. ए. एस. का तथाकथित एकाधिकार खत्म हो गया।
फिर भी आई. ए.एस. अधिकारियों को अपेक्षाकृत उंची तनख्वाह मिलती रही और उन्होने यह कह कर कि वे सभी सेवाओं को मिलाकर प्रत्येक बैच में हजार में से शीर्ष सौ में से चुने गए
है,वे इसको न्यायोचित भी ठहराते रहे।धीरे धीरे उनके उस दावे को भी चुनौती मिली और
सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों ने बहुत हद तक उनके इस विशेषाधिकार को भी खत्म किया। इस तरह
आई.ए.एस. के फालतू होने का प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
सर्वप्रथम विस्तृत बहस के माध्यम से लोगों द्वारा इसका फैसला किया जाना है।जिस तरह हमें
अच्छी सेना,अच्छे उद्योगपतियों आदि की आवश्यकता है, उसी तरह हमें अच्छे प्रशासन की
आवश्यकता है या नहीं।अगर इसका उत्तर हां में है तो फिर सवाल उठेगा कि हम कैसे अच्छे
प्रशासक पाएं और उन्हें अच्छा बनाएं रख सकें।प्रशासन राजनीतिक कार्यपालिका और नौकर-
शाही खासकर आई.ए. एस. शामिल होते है।जहां नौकरशाही का प्रधान आई.ए.एस. होता है,
सार्वजनिक जिंदगी को भूमि राजस्व,शिक्षा,स्वास्थ्य,सार्वजनिक आपूर्ति, पालिका,प्रशासन,शहर
विकास,आदिवासी विकास,कृषि, ग्रामीण विकास,सामाजिक कल्याण,महिला व शिशु कल्याण,
खेल कूद,सांस्कृतिक गतिविधि,उर्जा विद्युत शक्ति,टैक्सटाइल्स, उद्योग, वित्त, आदि विषय प्रभावित करते है। जहां विभागों के शीर्ष पदों पर आई.ए.एस. को हटा कर विशेषज्ञों को
बैठाया गया है।वैसे विभाग है पुलिस, सिंचाई, भवन निर्माण कार्य, सड़क,आयकर,रेलवे, डाक
सेवा, अंकेक्षण आदि।इसलिए जनमत यह है कि आई.ए. एस.और उनको दिया गया प्रशासन
दोनो अनावश्यक है तो इन दोनों बातों की आम जनता और राजनीतिक कार्यपालिका के
नजरिए से जांच की जानी चाहिए।

शासकों के बारे में साधारण रूप से राय यही होती है कि वे पैसा कमाने और अपने सगे संबंधियों को फायदा पहंचाने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं और आमतौर पर वे ऐसे नियम बनाते है जिससे आम लोगों की जिंदगी कष्टप्रद हो और वे अपने चहेतों को लाभ पहुंचा सकें।
लेकिन शासकों के लिए ऐसे नियम बनाना और ऐसी स्थितियां पैदा करना जिससे आम जनता
की जिंदगी अधिक कष्टप्रद हो कैसे संभव हो पाता है।लेकिन, ऐसी बातों का आरोप निश्च्िात
रूप से आई.ए.एस. अधिकारियों पर ही लगता है।आम जनता आई.ए.एस. को ऐसे दल के रूप
में देखती है जो आम लोगों के कष्टों को समझने और उनके लिए जमकर काम करने में विफल रहा है।मसलन एक साधारण आदमी जानता है कि कोई भी आई.ए.एस. अधिकारी किसी साधारण बस जैसे एस.टी बेस्ट या रेड लाइन से सफर नहीं करता या किरोसिन तेल
की लाइन में खड़ा नहीं होता इसलिए माना जाने लगता है कि न तो उसे किसी साधारण
आदमी की दिक्कतों की जानकारी होगी और न ही वह उसका सही समाधान कर सकेगा।
आम जनता यह जानती है कि एक संवेदनशील अधिकारी बिना क्यू में खड़ा हुआ किरासिन
की समस्याओं को जान सकता है और उसका समाधान कर सकता है लेकिन क्या वे सभी इतने संवेदनशील है?आम व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में सुविधाएं मुहैया कराने में उनकी विफलताएं अब दिन- ब-दिन इतनी स्पष्ट हो गई है कि जनता के बीच उनसे सहानुभूति रखने
वालों की संख्या भी कम होती जा रही है।
आई.ए.एस. के समर्थन में भी कुछ तर्क दिए जा सकते है।पहली बात यह है कि जैसा कि प्रतीत होता है, आई.ए.एस. अधिकारी कोई 'गैर विशेषज्ञ' नही होते। वास्तव में उन्हें समग्र रुप
से समस्याओं को सुलझाने और निति निर्माण के लिए दो सालों के प्रशिक्षण अवधि से गुजरना पडता है, जिससे वे संबंधित विषयों में विशेषज्ञता हासिल कर सके। उन्हे इस तरह प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे वे किसी विषय को एंकाग रुप से न देखे। जैसे उन्हें यह समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है कि सिंचाई केवल किसी बांध का निर्माण नही है बल्कि यह इससे संबंधित सभी सामाज शास्त्रीय, पारिस्थितिकी, भौगोलिक और आर्थिक सवालों को अपने में समेटे है, या मलेरिया प्रबंधन का मतलब किसी डॉक्टर का किसी मरीज को ' प्राइमांक्कीन टेबलेट' देना भर नहीं है बल्कि इससे तात्पर्य डाक्टरों की नियुक्ति से लेकर खून जांचने वाले
उपकरणों की उपलब्धता, दूसरे वैकल्पिक दवाओं का परीक्षण, सड़कों का अच्छा नेटवर्क आदि
सभी चीजों से है।
यह ज्ञान या प्रशिक्षण किसी आई.ए.एस. के पास उसके प्रशिक्षण के प्रथम दो सालों में नही आ
जाता बल्कि विभिन्न विभागों में विभिन्न नियुक्तियों के दौरान मिली जानकारी से प्राप्त होता है
आई.ए.एस. अधिकारियों को सेवा नियमों, वित्त के मामलों, बजट, योजना आदि में प्रशिक्षित
किया जाता है जो एक अलग तरह की विशेषज्ञता है उन्हें संसाधनो के निर्माण आदि में प्रशिक्षित किया जाता है और यह संसाधन भूमि,भूमि के उत्पाद,उपलब्ध सामग्री कामकाजी श्रम-
शक्ति प्रशिक्षक आदि हो सकते है।उन्हें योजना निर्माण, नीति निर्माण संसाधन विकास नीति
को बनाने आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण् बात यह है कि एस.डी.ओ.
कलक्टर और सी.ई.ओ.(जिन्हें फील्ड नियुक्ति कहा जाता है) पदों पर नियुक्त होने के बाद यह अधिकारी 'फील्ड' की स्थिति का बहुत नजदीकी से मुआयना करते है जो कि योजना निमार्ण
के लिए अनिवार्य है।
एक अच्छा प्रशासक( चाहें वह आई.ए. एस. हो या गैर आई.ए.एस.)वह होता है जो नियमों का
पालन करता है, जो त्रुटिपूर्ण नियमों को बदलने की मांग करता है, जो कुछ को फायदा पहुंचाने के लिए दूसरों को अन्याय का शिकार बनने से रोकने में सहायक होता है,जो उचित
नीतियों की सिफारिश करता है और उन पर दृढ़ रहता है,जो एक राजनीतिक शासक की जिसकी दिलचस्पी सिर्फ कुछ लोगों का समर्थन करना,उन्हें फायदा पहुंचाना भर है,की आंखों की किरकिरी तथा चुनौती है।अगर एक राजनैतिक नेता और किसी प्रशासक में बुरे कार्यों के
लिए किसी तरह की सांठगांठ है तो वे दोनों दूसरों की कीमत पर अपना काम करेंगे और पैसे
कमाएंगे।
कभी कभी एक अच्छा नेता और एक अच्छा प्रशासक एक साथ काम करके बहुत अच्छा
परिणाम दे सकते है।जहां पहली स्थिति होती है वहां नेता प्रशासक को पसंद नहीं करते है
और जहां दूसरी स्थिति होती है,लोगों के लिए वह वांछनीय नहीं समझा जाता।इस तरह दोनों
ही स्थितियों में जनता के लिए उसका प्रभावशाली उपयोग नहीं हो पाता और जब तक जनता इसे समझे कुछ कहे तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
पर एक तीसरी तरह की स्थिति भी होती है जो किसी विकासशील लोकतंत्र में अपेक्षित है।
विभिन्न क्षेत्रों में विकास की रणनीतियों को बनाने के लिए योजना निमार्ण,उनके क्रियान्वयन तथा प्रोत्साहन की जरूरत पड़ती है और इसमें किसी सामान्य-ज्ञान सम्पन्न,जरनलिस्ट की सेवाओं का बड़ा महत्व होता है । लेकिन उसके बाद? किसी विकासशील समाज का उददेश्य
क्या है? विकास के अतिरिक्त यह उद्देश्य और क्या हो सकता है।एक बार जब यह चरण आ
जाता है तब समाज को महत्वपूर्ण स्थानों पर विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है।
संक्षेप में आई.ए.एस. सेवा ( या कोई भी नियमों के अनुसार चलने वाली सेवा) का न तो किसी
अपराध से भरी राजनीतिक व्यवस्था में स्वागत होता है और न ही जेनेरलिस्ट होने के नाते किसी विकसित समाज में आई.ए.एस. की सेवाओं की जरूरत होती है। उसका महत्व केवल
विकास के चरण के दौरान है,और सिर्फ विकास के उद्देश्य से है और किसी उद्देश्य से नहीं।
आज राजनैतिक नेतृत्व और नौकरशाही के स्तर पर अच्छा परिणाम दिखाने का माद्दा तेजी से
खत्म होता जा रहा है।पचास के दशक में जब देश ने कई विकास तथा उपलब्धि के ख्वाब
देखे थे तब किसी जेनेरलिस्ट की सेवाओं की सबसे ज्यादा जरूरत थी। आज भी हम विकास
से काफी दूर है। लेकिन क्या हम खुद को सही दिशा में जाते देख रहे हैं?क्या हम महसूस करते हैं कि जो लक्ष्य हमने निर्धारित किए थे उनमें से कम से कम कुछ हमारी पहुंच के भीतर
है? अगर नहीं तो विफलता की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी आई.ए.एस.पर ही आएगा।आज क्या हम आई.ए.एस. अधिकारियों को देश की विकास संबंधी समस्याओं के समाधान में राजनीतिक
नेताओं के कंधे से कंधा मिलाकर काम करते देखते है या केवल नेताओं की सनक के आगे कातरता से झुक जाते हुए देखते है।क्या हम महसूस करते है कि दूसरी सभी सेवाओं पर आई.
ए.एस. के वर्चस्व को बरकरार रख कर हम अपने सभी उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते है।
अभी हाल में ही एक अंग्रेजी दैनिक में छपे सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षाविद और आम जनता
अभीभी आई.ए.एस. अधिकारियों में काफी विश्र्वास रखती है और वे महसूस करते है कि देश की उम्मीदों की वे एकमात्र किरण है।यह निष्कर्ष त्वरित सर्वेक्षण के बाद का है।जेनेरलिस्ट की
सेवाओं की इस जरूरत और आई.ए.एस. में विश्र्वास को गंभीर सार्वजनिक बहसों द्वारा भी बढ़ाया जाना चाहिए।

लेकिन आई.ए.एस. तबके को अपने में एक सामूहिक अतःपरीक्षण अवश्य करना चाहिए कि
अपने सभी संयोगों के साथ क्या आई.ए.एस. अच्छा परिणाम दे सकने की स्थिति में है? क्या
आई.ए.एस.के सदस्य सामूहिक चिंतन करने में सक्षम है और क्या वे अतःपरीक्षण के लिए तैयार है?क्या वे अपने प्रति लोगों के विश्र्वास को न्यायोचित ठहराने के लिए अपने को उसके
अनुकूल बनाने में सक्षम है?क्या वे सामूहिक रूप से आई. ए.एस. के भीतर घुसते जा रहे भ्रष्टाचार और दूसरी विध्वंसात्मक प्रवत्त्िायों को निकाल कर दूर कर सकते है?क्या आई. ए.
एस. निहित राजनीतिक हितों के साथ सांठगांठ को तोड़ सकेगें?क्या आई.ए.एस.आम जनता
और राजनीतिक नेतृत्व को साबित करने में सक्षम हो पाएंगे कि एक सामान्य ( जेनेरलिस्ट)
प्रशासकीय सेवा की आवश्यकता क्यों है? अगर नहीं, तो माना जाना चाहिए आज आई.ए.एस.
एक दुर्दिन में पड़ चुकी सेवा बन चुकी है।

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