मंगलवार, 11 सितंबर 2007

01 है कोई वकील ?

है कोई वकील ?
-- लीना मेहेन्दले, भा. प्र. से --

न्यायदेवता के हाथ के तराजू की तरह एकाध तराजू हम सब के मन में होता है। किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर हमारी धारणाएं बनीं होतीं हैं कि सही क्या है और क्या ग़लत । ऐसी ही एक धारणा थी कि अपराधी की सजा केवल न्यायालयों के मार्फ़त होनी चाहिए। लेकिन सत्रह नवंबर के अखबारों में जब पुलिस कारवाई की रिपोर्ट पढ़ी - कि कैसे माया डोलस आदि सात गुंडों को पुलिस ने ललकारा और अंतत उन्हें मार कर मुंबई को उनके शिकंजे से मुक्ति दिलाई, तो मेरे मन का तराजू डोल गया और पुलिस के लिये वाह वाही मेरे मन में गूँज गई।
अपने देश में लोकतंत्र का होना एक बड़ा वरदान है लेकिन इसके टिके रहने के लिये कई शर्ते हैं और ये शर्ते आज टूटती बिखरती दिख रही हैं। मसलन व्यक्तिगत विकास के अवसर की शर्त टूट चुकी है क्यों कि जो पचास प्रतिशत जनता अभी भी सुशिक्षित नहीं हैं, उसके लिये कैसा विकास ? जहाँ हजारों की संख्या में लोगों को जेल में डालकर फिर पंद्रह बीस वर्षों तक उनकी केस ही सुनवाई के लिये नहीं लाई जाती हो वहाँ कैसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता ? जहाँ आर्थिक विषमता इतनी फैल चुकी है वहाँ कैसा समान अवसर ? और जहाँ राजकीय क्षेत्र से लेकर अन्य हर क्षेत्र में इतना भ्रष्टाचार फैल गया हो वहाँ कैसा शासन ?
फिर भी हम चाहते हैं कि कोई उपाय निकल आये जिससे लोकतंत्र के टिके रहने की आशा बढ़ जाये। इसका उपाय यही है कि हर क्षेत्र में जहाँ सुधार की आवश्यकता है वहाँ सुधार किये जायें। इस संदर्भ में और गुंडों पर की गई पुलिस कारवाई के संदर्भ में हम न्यायालय और पुलिस विभाग में पनप रही बुराइयों का मूल कारण ढूँढ़ सकते हैं।

न्यायालय और पुलिस सरकारी शासन प्रणाली के दो अंग है। एक का काम है अपराध की छान बीन करना, और उसे रोकना। रोकने के लिये आवश्यक है कि पहले अपराधी को सजा मिले ताकि दुसरा अपराध करने की हिम्मत ही न हो। पुलिस केवल यह खोज करती है कि अपराध किसने किया, कैसे किया और अपराध के विरूद्ध क्या सबूत हैं। सबूतों की जाँच परख और अपराधी को सजा देने का काम न्यायालय का है।

लेकिन जनता की निगाह में, आम आदमी के जीवन में महत्वपूर्ण जानकारी केवल यह है कि कितने अपराध हुए, और कितने अपराधों को रोक पाना पुलिस के लिये संभव हुआ। जहाँ अपराध रोका नहीं गया वहाँ अपराधी का पकड़ा जाना, उसे सजा मिलना और सजा भी बिना समय गँवाये मिलना आवश्यक है। जब एक माया डोलस कानून से बचकर खुले आम घूमता है तो सैकड़ो शांति - पसंद आम आदमियों की जिंदगी और चैन खतरे में होतें हैं। यह खतरा यदि मिटता हो तो आम आदमी पहले खुशी मनायेगा कि खतरा मिटा। बाद में बहुत बाद में , हजारों में एक कोई पूछेगा कि माया डोलस का पुलिस के हाथों मरना लोकतंत्र की रक्षा के लिये अच्छा कहा जाए या बुरा । यदि इस घटना को अच्छा माना जा सकता है, तो ऐसी अन्य हजारों छोटी बडी घटनाओं को क्या कहा जाये ? जब कितने ही निष्पाप और निरीह व्यक्ति पुलिस की ज़्यादतियों के शिकार होते हैं। अच्छे और बुरे की लक्ष्मण रेखा को कहाँ खींचा जाये ? लेकिन आम आदमी यह सवाल नहीं उठायेगा।

यदि माया को पुलिस ने जिंदा पकड़ लिया होता और न्यायालय के सम्मुख पेश किया होता तो माया को अपनी केस लड़ने के लिये अच्छा से अच्छा वकील मिल जाता । दुर्भाग्य हमारी कचहरियों में ऐसा कोई नियम नहीं है कि अपराध की गर्हता के कारण किसी केस की सुनवाई जल्दी से जल्दी पूरी करना .जरूरी हो। छाटे से छोटे मसले को लेकर एक के बाद दूसरी अपील की जाती है और असली सुनवाई को टाला जाता है। वास्तव में ऐसी केस के लिये नियत समय में सुनवाई पूरी करने का, और अहम्‌ मुद्दे के अलावा अपील न करने के नियम बनाये जा सकते हैं। जब सुनवाई हो तो गवाहों का न मिलना, पुलिस वकील की योग्यता या ढीलापन आदि कई मुद्दे सामने आयेगें। ये ऐसी बातें हैं जहाँ ट्रेनिंग से काफ़ी सुधार किया जा सकता है लेकिन ऐसी भी कोई व्यवस्था नही है। इन सबके फलस्वरूप परिणाम यही निकलता कि माया की केस की सुनवाई खिंचती चली जाती । शायद वह रिहा हो जाता । या जेल से भाग निकलता । यदि जेल में भी रहता तो ठाठ से रहता । यह सभी यह सभी संभावनाएँ एक सामान्य शांति पसंद आदमी को डरा देने के लिये काफ़ी हैं। ऐसी किसी भी केस की सुनवाई में क्या कभी उस बम्बइया आम आदमी के लिये वकील मिला है जो इसी डर से जियेगा कि यदि माया छुट गया तो गेंगवार की गोली का शिकार कौन होगा। उस आम आदमी के लिये भी कोई वकील नही है जिस की .जेब उस खर्चीले कोर्ट की नुक्ताचीनी में खाली हो रही है। उन पुलिस सिपाहियों के लिये वकील नही होगा जिन्होने लगातार सात आठ घंटे अपनी जान पर खेल कर इस कारवाई में हिस्सा लिया। और उन सिपाहियों के लिये भी नहीं जो कर्तव्य पूर्ति की इस लड़ाई में शहीद हो गये । क्या ये सब और हम और आप न्यायालयों से उनके हक़ के रक्षा , उनकी संपत्त की रक्षा की, उनकी जानमाल के रक्षा की और उनके शहादत के सम्मान की अपेक्षा नहीं कर सकते ?

यह बार बार कहा जा चुका है कि यदि हमारे न्याय - प्रकिया में कोई कमी है तो वह दो कारणों से। हमारे राज्यकर्ता न्यायसंस्था को अधिक मजबूत नहीं करना चाहते - आज केसों के मुक़ाबले जितने जज चाहिये, उसके करीब आधे या एक तिहाई जज ही नियुक्त किये गये हैं। उनके बैठने के लिये उचित जगह नहीं है, समुचित स्टाफ नहीं है, रेकार्ड रूम नहीं है, मायक्रो फिश्मिंग जैसी सुविधायें नहीं हैं। दूसरी ओर हमारी न्याय प्रणाली के कानून इतने पेचीदे हो गये हैं कि साधारण से साधारण मामला भी अदालत में आकर अटक सकता है, और वर्षो तक घसीटा जा सकता है। इस पेचीदगी और राज्यकर्ता की अकर्मण्यता से उत्पन्न खतरा केवल न्यायसंस्था तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि हमारे लोकतंत्र को भी तोड़ रहा है।
है कोई वकील इस लोकतंत्र की केस चलाने के लिये और है कोई न्यायालय जहॉ यह सुनवाई हो सके ?
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दै. हमारा महानगर, मुंबई

सोमवार, 10 सितंबर 2007

******* अनुक्रम --सभी हिन्दी आलेख-सग्रंह






गर्भनाल --- 
आरम्भ भाग १  -प्रशासक और नेता -- 30 वर्षोंकी बात -- मार्च २०१९ -- समाजमनाचे बिम्ब या ब्लॉगवर

भाग २ लखनऊ स्टेशनसे -- एप्रिल २०१९

भाग ३ मसूरी प्रशिक्षण का आरंभ और मेरा अख्खड बिहारीपन मई २०१९
भाग ४ जून २०१९ - देवदासी समस्यासे मेरा आमना–सामना

भाग ५ संस्मरणीय मसूरी प्रशिक्षण जुलाई २०१९

भाग ७ धरणगांवकी सुगंध -- सितम्बर २०१९
भाग ८ औरंगाबादमें स्वागत अक्तूबर २०१९

वर्णिकाओं, सुनो -Feb-2018 

गर्भनाल --- इनस्क्रिप्ट संबंधी लेख
हिंदी राग : अलगाव का या एकात्मता का?-Sep-2017 
वर्णमाला, भाषा, राष्ट्र और संगणक Oct-2017 
समृद्धि व संगणक का भाषाई समीकरण Nov-2017 
भाषायी समाधान की साझी तकनीकि युक्ति Dec-2017 
11वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, मॉरीशस "ग्यारह" दिन चले अढ़ाई कोस Sep-2018 


२३-११-२०१८ --  क्या गलत है मायथोलॉजी शब्दमें --  मातृभाषा संग्राहकपर भी है 


हालकी कुछ रचनाएँ- देशबन्धु (राजकीय चिन्तन पर)
दूर-संचार की दिशा में प्रभावी पहल ---------देशबन्धु24, JUN, 2014, TUESDAY (Also on my blog Prantsahabi)
एफडीआई का जबर्दस्त जंजाल --------- देशबन्धु14, DEC, 2012, FRIDAY
जमीनदारी और रिटेल एफडीआई -------- देशबन्धु29, NOV, 2012, THURSDAY
कहो-ऑल इज नॉट वेल -------    देशबन्धु 03, NOV, 2012, SATURDAY
भ्रष्टाचार-मुक्त कारगर प्रशासन का पंचशील --------देशबन्धु  25, OCT, 2012, THURSDAY
गुलामी की मंजिल-स्विस बैंक के रास्ते ------- -देशबन्धु 12, OCT, 2012, FRIDAY
एफडीआई की उतावली - -------देशबन्धु 24, SEP, 2012, MONDAY
व्यवस्था परिवर्तन सूत्र -- सांख्यिकी पद्धति में सुधार- ------- देशबन्धु27, AUG, 2012, 
MONDAY
व्यवस्था परिवर्तन -- अपराध दर्ज ..देशबन्धु 15 सित
शार्टकट से चिरंतन कुछ भी हासिल नहीं होगा -- --------देशबन्धु 10, AUG, 2012, FRIDAY-- मेरी 


प्रांतसाहबी पर भी




लेखसंग्रहसे अन्य पुस्तकें
अणु विज्ञान 
फिर वर्षा आई
सुवर्ण पंछी
हमारा दोस्त टोटो
गुजारा भत्तेका कानून
देवदासी
शीतला माता
एक था फेंगाड्या
मन ना जाने मनको 
संगणक की जादुई दुनिया
चावल की खीर
आज भी द्वारिका
आकाश दर्शन

आदित्य -- फजिती, वीज, बिजली, बल कार्य ऊर्जा और शक्ति, 
दादा -- पातंजल योगसूत्र, सांख्यकारिका, योगत्रयी, बुद्धयोग -- भगवद्गीता में
सतीश -- मिट्टीके रास्तोंका देश,  पराशर -- आग बनो

3 लेखसंग्रह -- जनता की राय, है कोई वकील  लोकतंत्रका !, मेरी प्रांतसाहबी
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है कोई वकील  लोकतंत्रका !---- हिन्दी आलेख --सग्रंह-२
आलोकपर्व प्रकाशन, 1/6588, 5-ईस्ट रोहतास नगर, नई दिल्ली--110032, फोन 011-22328142
List below exactly as per book Titles with X are not yet available on leap or unicode font.
Bracketted – the dates appearing in preparatory papers

(TO LOCATE 4/26 LEKH) अभिभावक की आँखों से, निसर्गोपचार एक आवश्यक फलसफा, नौकरशाही में सन्यासी,  आयुर्वेद पर अवैज्ञानिकता की मुहर क्यों,  औरत के विरुद्ध

मेरी भूमिका -- वकालत हमें ही करनी है।

1. है कोई वकील ? - दै. महानगर, मुंबई, डिसेंबर १९९१ 
२. सावित्री के साथ समाज ने अन्याय किया है - सा. रविवार, मुंबई, १९८६

३. आदि शकंराचार्य के उत्तराधिकारी - सा. रविवार, मुंबई, १९८५

४. आरक्षण नीति IIPA प्रतियोगिता १९९१ प्रथम पुरस्कार- दै. राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली,

५. गुनहगारी के बदलते चेहरे - दै. महानगर, मुंबई, डिसेंबर .१९९२ (written with signed dt 1-12-92 )

XX ६. अभिभावक की आँखों से - दै. महानगर, मुंबई, मार्च १९९१

७. भंडाफोड से उजागर गलतियां + चालाक दलाल व भ्रष्ट राजनीति के भण्डाफोड से किसकी पोल खुली(in 2 parts)-दै. महानगर, मुंबई, २९.०६.१९९३ + 2.7.93  printed on those days )

८. भारतीय नौकरशाही की पुनःसरंचना IIPA प्रतियोगिता १९९३ द्वितीय पुरस्कार -ok -दै. राष्ट्रीय सहारा, 
दिल्ली,

XX ९. निसर्गोपचार एक आवश्यक फलसफा - परिषद प्रभा, दिल्ली, 1991 + मुंबई, भाषण, १९९३

१०. यह शोर कैसा, महानगर - दै. महानगर, मुंबई, ०२.०३.१९९४ -ok

११ राष्ट्रभाषा बचाने का एक सूत्री कार्यक्रम - ? (19-7-??) अन्य संदर्भ दै. महानगर मई 1992

१२. खैरनार के पक्ष में - दै. महानगर, मुंबई,

१३. बटमारी के हिस्सेदार - दै. महानगर, मुंबई,

१४. प्लेग का भय - दै. हिंदुस्तान, दिल्ली,11-10-1994

१५. हवाला के मुद्दे - दै. हिंदुस्तान, दिल्ली, २०.०२.१९९६ व २९.०२.१९९६ (dts are 20 and 21 feb or perhaps 22, 23 feb)

१६. धुन की पक्की महिलाएँ - दै. अक्षरपर्व(देशबन्धु,) रायपुर, (written as settlement com.—96)

XX १७. नौकरशाही में सन्यासी - दै. हिंदुस्तान, दिल्ली, २४.०४.१९९५ – (was that dt of writing?) [+ हिन्दू धर्म में संन्यास-- दै. महानगर 3-5-95 (not referred while editing article for book)]

१८. एक सिंचन व्यवस्था एक विचारधारा (in 2 parts)- दै. राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली, १२.०३.१९९५ +(??) -ok

XX १९. आयुर्वेद पर अवैज्ञानिकता की मुहर क्यों ? दै. हिंदुस्तान, दिल्ली, (written as settlement com.—96)

२०. क्या भारतीय प्रशासनिक सेवाएं गैर जरूरी बन गई है? ---दै. हिंदुस्तान, दिल्ली, २५.०५.१९९६ --ok

२१. दिल्ली में महिला सुरक्षा - - दै. राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली, ??

२२. स्वास्थ्य नीति : सेवा बनाम शिक्षा --कुछ गायब है

२३. औरत के विरुद्ध - पश्यन्ति, दिल्ली, अक्तू २००२ -ok

२४. दिल्ली का सांस्कृतिक बंजर - दै. हिंदुस्तान, दिल्ली,

२५. व्यर्थ न हो यह बलिदान - दै. हिंदुस्तान, दिल्ली,
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मेरी प्रांतसाहबी

मेरी प्रांतसाहबी -- third collection of my articles on social and administration issues
प्रकाशक  -- संकेत प्रकाशन, 5 उपेन्द्रनाथ अश्क मार्ग, (पुराना खुसरो बाग रोड) इलाहाबाद
फोन 09450632885

प्रस्तावना -- ललित सुरजन, रायपुर फोन 09827141800
मेरे दो शब्द

खोजो --  भगवद्गीताप्रणीत बुद्धियोग, राजस्थान -- क्या है जनमने और पढने का हक,मालूम ही नही कि सुभाष स्वतंत्रता सेनानी थे 

1. मेरी प्रांतसाहबी 1-21-- नया ज्ञानोदय दिल्ली, y

2. पेपर लीक का जबाब है

3. कौन करेगा ये वादा -- रिंकू पाटील की हत्याके संदर्भसे

4. व्यवस्था की एक और विफलता y

5. इस ढीली दण्ड प्रक्रिया को बदलिये y

6.हिन्दी भाषा और मैं

7. संगणक और हिन्दी -- जरूरत है मूलतत्व तक जाने की

8. गो. नी. दाण्डेकर

9. मथना -- एक सागर को -कुसुमाग्रज की कविता को

10. डॉ. राज बुद्धिराजा

11. भगवद्गीताप्रणीत बुद्धियोग -चित्रप्रत

12. तेलगी के दायरे में -जनसत्ता ११.१२.०३ 

13. इस चुनाव में मैं बेजुबान -हिंदुस्तान

14. विभिन्न राज्यों में महिला विरोधी अपराधों का विश्लेषण - मासिक हिमप्रस्थ, सिमला में प्रकाशित

15. राजस्थान -- क्या है जनमने और पढने का हक  + शिशु-लिंग-अनुपात-योजना

16. महिला सशक्तीकरण की दिशा में - योजना

17. सुरीनामियोंकी चिन्ता -जनसत्ता

18. उन्मुक्त आनंद का फलसफा

19. बायोडीजल : अपार संभावनाएं

20. हाथ जनता की नाडी पर -हिंदुस्तान

21. अगस्त क्रांति भवन -- अर्थात् कथा 9 अगस्त की इमारत की -हिंदुस्तान

22. मालूम ही नही कि सुभाष स्वतंत्रता सेनानी थे 

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जनता की राय से
गुजरात ने जो कहा, कलाकार की कदर, नीरस जीवन की भुक्तभोगी,  

समाज बनाम प्रशासन -- मेरे लेखोंकी भूमिका 
बंद दरवाजों पर दस्तक देते आलेख -- कमलेश्वरजी द्वारा लिखी प्रस्तावना 
१. हिन्दी में शपथ - जन. १९ अक्टूबर १९९९ y 
२. बच्चों को तो बख्शिए - जन. ३० अक्टूबर १९९९ y 
३. उठो जागो - जन. ११ दिसंबर १९९९ y 
४. नई सहस्त्राब्दी के पहले - जन. १७ दिसंबर १९९९ y 
५. हर जगह वही भूल - जन. ३० दिंसबर १९९९ y 
६. सुयोग्य प्रशासन - जन. ८ जनवरी २००० y 
७. पचास साल बाद हिन्दी - जन. ३ फरवरी २००० y 
८. पुलिस प्रपंच - जन. २५ मार्च २००० y 
९. दिल्ली में युधिष्ठिर - जन. ६ अप्रैल २००० y 
१०. भीड़ के आदमी का हक - जन. १४ अप्रैल २००० 
११. नमक का दरोगा - जन. ५ जून २००० 
१२. जनतंत्र की खोज में - जन. १७ जून २००० 
१३. अर्थव्यवस्था का नमक - जन. २ अक्टूबर २००० 
१४ लालकिले पर कालिख - जन. १४ अक्टूबर २००० 
१५. इक्कीसवीं सदी की औरत X - जन. १७ दिसंबर २००० 
१६. अपने अपने शैतान - जन. २ दिसंबर २००० 
१७. तबादलों का अर्थतंत्र - जन. ६ दिसंबर २००० 
१८. काननून अन्याय - जन. २६ दिसबंर २००० 
१९. राष्ट्रीय संकट में हम - जन. २ फरवरी २००१ 
२०.गुजरात ने जो कहा X - जन. ६ मार्च २००१ 
२१. कलाकार की कदर X - जन. ४ मई २००१ 
२२. नीरस जीवन की भुक्तभोगी X - जन. ६ मई २००१ 
२३.गुजारा भत्ते की दावेदार कैसे बने - रास. १८ फरवरी २००१ 
२४. एड्स का खौफ X - रास. २७ मई २००१ 
२५. छोरी साइकिल चलावै छे - प्रख ३१ अक्टूबर २००२ 
२६. बीजींग कान्फरंस, सीडॉ और भारतीय महिला नीति X - (जालंधर में दिया गया भाषण) 
२७. परीक्षा प्रणाली में आमूलाग्र सुधार हो X - नभाटा. १२ फरवरी १९९९ 
२८. एक स्त्री का साहस X - जन. ३ फरवरी २००० 
२९. 27_sainik_shraddhanjali.-एक श्रद्धांजली X - प्रख. जून १९९९ 
३०. पढाई का बोझ X - रास. २२ जुलाई २००१ 
३१. क्या हमारे खून में कश्मीर है - हिंदुस्तान २३ जुलाई २००२ 
३२. लिंगभेद से जूझते हुए - तारा - सनद, अंक १० 
३३. शीतला माता - अप. मार्च २००४ 
३४. सत्ता तंत्र में कमाई : जनता क्या है तेरी की राय- हिंदुस्तान २३ मार्च २००४ 
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अन्य चौथे संग्रह के लिये उपलब्ध
चौथे पुस्तक की तैयारी देखें -- ब्लॉग -- है कोई वकील ? --- 

८२. कौन करेगा यह वादा - महानगर
८३. अफसोस जाहिर किया ठीक है - महानगर
८४. केंद्र सरकार में हिंदी प्रयोग को बढ़ावादेने बाबत कार्यसमिति का गठन
८५. महिला सशक्तीकरण की दिशा मे ---- योजना
८६. राजस्थान में शिशु - लिंग अनुपात, + स्त्री भ्रूण हत्या - योजना
८७. खुली अर्थव्यवस्था किसके लिए खुली है - महानगर
८८. महाराष्ट्र में महिला विरोधी अपराध - बलात्कार
८९. दूबधान - नागपूर की महिलाओं के लिए- हिंदुस्तान
९०. राजस्थान : जनमने और पढ़ने कर हक - योजना
९१. नीतिरस्मि जिगिषिताम्‌ 
९२. कुसुमाग्रज की कविता - विपाशा
९३. हिंदू धर्म में सन्यासी - महानगर
९४. उदारीकरण की ओरः प्रशासन के सम्मुख समस्याएँ एवं चुनौतियां
९५. क्यों बजट से आम आदमी खुश नहीं है ? - महानगर
९६. अयोध्या कांड और हिंदू धर्म विचार
९७. कुसुमाग्रज की प्रेमकविता - हिमप्रस्थ
९८. सरकारी कार्यालयों में संगणक
९९. विभिन्न राज्यों में महिला विरोधी अपराध विश्लेषण - हिंदुस्तान
१००. भ्रष्टाचार से निपटने का शुरुआती रास्ता - हिंदुस्तान
१०१. गोवा इलेक्शन - (From English Articles)
१०२. सत्ता में आर्थिक समीकरण - ?
१०३. उदारीकरण की ओर प्रशासन के सम्मुख समस्याए एवं चुनौतियाँ
१०४. छुट्टियाँ कम करो अभियान
१०५. निसर्गोपचार -- एक आवश्यकता
१०६. केंद्र सरकारमें हिंदीको बढावा देनेबाबत कार्यकारी समिती का  गठन

महाराष्ट्र की भक्ति परंपरा में विठ्ठल

सोने के हथियार से लडने के लिये

युगान्तर के पर्व में

हजारों स्कॅम -- देशबन्धु, रायपुर Nov, 2010

विभिन्न भारतीय भाषाओं में आदान प्रदान की संभावनाएँ - शब्दसृष्टि

हॉलण्ड का समाज दर्शन

स्वाइन फ्लू और सरहद देशबन्धु, रायपुर

कम्प्यूटर व हिन्दी -- विश्वहिन्दी सेक्रेटारिएट Jan 2011 issue

हिंदी बरकरार रखने के लिये संगणक

एक था फेंगाडया-- अनुवाद के प्रसंगसे

भ्रष्टाचार से निपटने का शुरुआती रास्ता हिंदुस्तान

स्त्रियोंमें बढती जागरूकता -- संगिनि मसिक सितंबर 

राजस्थान : जनमने और पढ़ने कर हक - योजना (शिशु लिंग भेद + स्त्री भ्रूण हत्या) 


महिला सशक्तीकरण की दिशा मे ---- योजना


सरकारी कार्यालयों में संगणक

खुली अर्थव्यवस्था किसके लिए खुली है महानगर
केंद्र सरकार में हिंदी प्रयोग को बढ़ावा देने बाबत कार्यसमिति का गठन - ?महाराष्ट्र में महिला विरोधी अपराध
हिंदू धर्म में सन्यासी महानगर
उदारीकरण की ओरः प्रशासन के सम्मुख समस्याएँ एवं चुनौतिया
क्यों बजट से आम आदमी खुश नहीं है ? - महानगर
अयोध्या कांड और हिंदू धर्म विचार
दूबधान नागपूर की महिलाओं के लिएहिंदुस्तान
कुसुमाग्रज की प्रेमकविता हिमप्रस्थ
कुसुमाग्रज की कविता विपाशा
नीतिरस्मि जिगिषिताम्‌
भ्रष्टाचार से निपटने का शुरुआती रास्ता हिंदुस्तान
गोवा इलेक्शन - (From English Articles) सत्ता में आर्थिक समीकरण - ?
कौन करेगा यह वादा - महानगर, अफसोस जाहिर किया ठीक है - नभाटा
महिलाओंका घटता लिंग अनुपात और फिसड्डी साक्षरता 

डेंग्यूसे करो मुकाबला होमियोपैथीसे

सच्चाई का संस्कार, कठिन नही है डगर अभिभावक की, जानो अपनी समृद्धि को, तीनों हिमालयन ओऍसिस, सिमला के अंक में प्रकाशित और एकत्र मिलाये जा सकते हैं।

नौकरशाही की संवेदनशीलता कहाँ गई, व्यवस्था की एक और विफलता - महानगर, ऑगस्ट क्रांति और सरकारी छुट्टियाँ, छुट्टियाँ कम करो अभियान --- ये चार लेख तीसरे संग्रहसे मिलाकर देखना है।
महाराष्ट्र में महिला विरोधी अपराध
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Added on 2-7-2013

गोवंश ह्रास कि सरकारी नीती

डूबेंगे शर्ममें बारबार -- (दिल्ली गँगरेप केस)

क्यूँ नही सरकार रद्द करती 2G Specrtum के गैरकानूनी व्यवहार

महाराष्ट्र में महिला विरोधी अपराध : बलात्कार

चेत जाइये वरना युनीकोड बनेगा हमारी एकात्मिक सांस्कृतिक धरोहर को खतरा

शॉर्टकट से चिरंतन कुछ भी हासिल नहीं होगा देशबन्धु १० अगस्त २०१२

व्यवस्था परिवर्तन सूत्र 1  देशबन्धु 27, Aug

व्यवस्था परिवर्तन -- अपराध दर्ज कराने व उसकी छानबीन बाबत सुधार  देशबन्धु 15 सित.

एफडीआई की उतावली    देशबन्धु 24, Sep, 2012,

गुलामी की मंजिल..स्विस बैंक का पैसा देशबन्धु 12, अक्तू..