गुरुवार, 24 जनवरी 2008

जानो अपनी समृध्दि को

जानो अपनी समृध्दि को
-लीना मेहेंदळे

हमारा देश और संस्कृति दोनों अतिप्राचीन हैं | अतएव इतका
जतन करना भी हमारी जिम्मेदारी बन जाती है | जतन करने की कई
विधाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण है नामकरण और गिनती |
कया पशुपक्षी भी एक दूसरे को नाम से पहचानते या बुलाते हैं ?
शायद नही | कमसे कम हम मनुष्यों को तो यह नही मालूम | लेकिन
हम अपने संगी साथियोंको नाम से पहचानते हैं | घर में नया शिशु
ज-म लेता है ती जल्दी से उसका नामकरण करते है | घर मे कोई प्रिय
जानवर हो, जैसे गाय, बकरी, कुत्ता, घोडा, सांड तो उनका भी हम
नामकरण करते हैं | इस प्रकार नामकरण से यह सुविधा होती है कि
उस व्यकित की बाबत बात करना आसान हो जाता है | हम वस्तुओं
के भी नाम देते हैं | व्याकरण मे सबसे पहले हम नाम या संज्ञा के
विषय में ही पढते हैं | किसी वस्तु के नाम के साथ जब हम उसका
बखान करते हैं तो इससे ज्ञानके विस्तार में सुविधा होती है | यही बात
गणित और गिनती के साथ भी है |
आगे पढें
----------------------------------------------------
हिमालयन ओऍसिस, सिमला के अंक में प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं: