गुरुवार, 15 जुलाई 2010

07 भण्डाफोड से उजागर गलतियाँ--पूरा है

भण्डाफोड से उजागर गलतियाँ


आज जब देश के सारे पत्रो में यही समाचार उछाला जा रहा है, कि क्या श्री रावने हर्षद मेहता से एक करोड रुपये लिये, या कैसे लिये या नही लिये, तो आईये जरा उन गलतियो को गिनने का प्रयास भी करें, जो इस काण्ड में श्री राव ने की हैं, और हमने की हैं। पहले कुछ देर हम या मानकर चलते हैं कि अपने अफेडेविट में एक करोड की घटना के विषय में हर्षद मेहता ने जो कुछ कहा हैं, वह सारा सच है। बाद में दूसरी चर्चा हम यह मानकर करेंगें कि हर्षद ने गलत ब्यौरा दिया है।

श्री राव की पहली गलती है चुनाव लडने के लिये इतना बडा बजेट बनाने की। माना कि आज चुनाव लडने के लिये हर किसी को पैसे की जुगत भिडानी पडती हैं, माना कि अमरीका जैसे प्रगत और जागरुक देश के चुनावी उम्मीदवार भी इससे नही बच पाये है, फिर भी देश के कानून के मुताबिक और देश के लिये आवश्यक स्वच्छ प्रशासन को नजर मे रखते हुए यह कहना पडेगा कि जो भी चुनावी उम्मीदवार चुनाव लडने के लिए इतनी बडी रकम लागत पर लगाने बात को स्वीकार करता है, उससे आप भ्रष्ट प्रशासन की ही अपेक्षा कर सकते है, स्वच्छ प्रशासन की नही। और हम सारे बुध्दिजीवी जो हर चुनाव में बढोतरी होने वाली चुनावी लागत को देख रहे है, और स्वीकार कर रहे हैं कि, 'हाँ आखिर उम्मीदवार भी बिचारा क्या करें?' वो हम सारे भी उस भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी और दुष्परिणामों को ढो रहें हैं और ढोते रहेंगे। फिर भी हममें और उम्मीदवार में एक फर्क अवश्य रहेगा। हमनें जो गलती हताशा में और अकर्मण्यता के कारण स्वीकार की है और जिसका दुष्परिणाम भी हमें ही भुगतना है, वह गलती चुनावी उम्मीदवार अपनी मर्जी से करता है, और उस धन व सत्ता के लिये करता है जो कई बार उसे मिल भी जाते हैं। इसे करने में जो बेईमानी हैं, वह उम्मीदवार की ही हैं। और यदि सौ उम्मीदवार यह गलती करते हैं और नही पकडे जाते, तो इससे उस एक उम्मीदवार की गलती नही छिप जाती जो पकडा जाये। उसकी और बाकी न पकडे जाने वाले उम्मीदवारों की गलती के प्रति यदि हम और आप आवाज नही उठाते तो इसका अर्थ है कि हमें वह दुर्भाग्य और दुरवस्था मंजूर है, जिसे हम अपनी इस अकर्मण्यता के द्वारा आमंत्रण दे रहे है। अगर श्री राव ने भ्रष्ट आचरण की गलती की है, तो हमने भी गलती है अकर्मण्यता की। और हमारी गलती उनकी गलती से कई गुना अधिक गंभीर है।

अगर हम मान लें कि हर्षद मेहता ने जो कुछ कहा है, वह सच कहा है, तो कई और गलतियां उजागर हो जाती हैं। एक खतरनाक गलती सुरक्षा से संबंधित है। अगर हर्षद का कहना सच है तो यह मानना पडेगा कि, हर्षद जिन सुटकेसों को लेकर श्री राव से मिलने गया उन सुटकेसों की जाँच किसी भी सुरक्षाकर्मी ने नही की। साथ ही हर्षद का यह कहना है कि, उसने राव के साथ और श्री खांडेकर के साथ हुए वार्तालाप को टेप भी किया है और टेप भी उसके पास उपलब्ध है। प्रश्न यह उठता है की सुरक्षाकर्मियों ने उसे इस प्रकार टेपरेकॉर्डर अंदर किस प्रकार ले जाने दिया। अगर उसका कहना सही है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं की सुरक्षाकर्मियों का काम कितना ढीला पड गया है या पड सकता है। भविष्य में कोई भी धनी व्यक्ति पैसे भरा सूटकेस देने के बहाने रिवॉल्वर ले आ सकता है और कुछ भी हो सकता है।
कई लेखकों के विश्लेषण में यह तर्क आया कि जब हर्षद ने श्री राव को पैसे दिये उस समय बैंक
के प्रतिभूतियों के घोटाले नहीं शुरु हुए थे। इसलिये यह मानना गलत है कि इस प्रतिभूति के घोटाले के लेखक या कर्ताधर्ता भी श्री राव ही हैं। या यह मानना भी गलत है कि हर्षद मेहता ने यह पैसे राव को उन प्रतिभूति घोटालों को ठंडा करने के लिये दिये थे। लेकिन इस मुद्दे की चर्चा बाद में करेंगे। गौर करने की
बात हैं कि, अगर श्री राव ने हर्षद से एक करोड रुपये लिये या उन्हें बताया गया कि, उन्हें हर्षद से एक करोड रुपये मिलने वाले है, तो उनके दिमाग में सबसे पहले यह प्रश्न उठना चाहिए कि, हर्षद मुझे यह पैसे किस लिये दे रहा हैं? और बदले में मुझसे क्या लेने वाला है। और कितना लेनेवाला है। हर्षद कहता है, और चाहता है कि हम मान लें कि यह महज एक चुनावी डोनेशन था। लेकिन जरा अपने अपने शब्दकोष पल्ट कर देखिए कि ' महज चुनावी डोनेशन ' इन शब्दों का अर्थ क्या निकलता है? इसका अर्थ यह नही है कि उसने यह रुपये उठाए, दे दिये और दामन झटक कर अलग हो गया। वह जानता था और राव भी जानते थे इस एक करोड का मूल्य कई गुना बढा चढा कर ही वसूल किया जाएगा और मान रहा था कि राव को उसमें कोई आपत्त्िा भी नही होगी। यदी राव इसे गलती नही मानते और यदि हम और आप इसे गलत मानते हैं तो इसे सुधारने का उपाय भी हमें ही करना है।

हर्षद का कहना है कि, इसका परिचय बम्बई के दो जगमगाते सितारो के रुप मे कराया गया और तीन मिनिटों में उसने और उसके भाई अश्र्िवन मेहता ने श्री राव को समझाया कि इस देश की एकॉनॉमी को आगे ले जाने का, प्रगति के रास्ते पर, विकास के रास्ते पर ले जाने का वही आसान तरीका हो सकता है, जो वह अपना रहा है या अपनाने वाला है। यदी हम मान लें कि श्री राव ने उन तीन मिनटो की बात को अच्छी तरह से सुन लिया और स्वीकार भी कर लिया, तो यह सबसे बडी गलती मानी जानी चाहिए। बल्कि सच तो यह है कि, भले ही श्री राव ने यह गलती की हो या न की हो पर हम यह गलती कर रहें है, कि हम हर्षद को एक बडा व्यापारी मान रहे हैं, ईमानदार मान रहे हैं और जब वह यह प्रश्न उठाता है की क्या इस देश में उसे अपने मनपसंद रोजगार करने का हक नही है, तो हम भी अपना सिर हिला कर कहते है 'हाँ भाई हाँ, हक तो उसे होना ही चाहिए।' हाँलाकि कुछ अखबारों ने हर्षद के इस ब्यान का समर्थन नही किया है, फिर भी ऐसा लगता है कि सामान्य आदमी की सहानुभूति इस प्रश्न को सुनने के बाद हर्षद के साथ हो गई है। जब देश में करोड से अधिक बेरोजगार पडे हुए है, और ३० - ४० करोड से अधिक लोग पर्याप्त काम न होने से आधे पेट जिंदगी गुजार रहे है तो जो भी आदमी रोजगार के हक की दुहाई देगा, जनता उसके साथ साहनुभूति दिखाएगी।

इसलिए इस बात की जाँच परख करना आवश्यक हो जाता है की, जिसे हर्षद अपना व्यापार, अपना पेट पालने का धंधा कहता है। वह क्या इस वर्णन के पात्र है। इसके लिए हमें यह बडे साफ गोई के साथ समझना पडेगा कि, व्यापार या रोजगार ऐसी चीज है, ऐसी बात है जो पूर्णतया आपकी उत्पादन क्षमता पर निर्भर करती है। अगर आप किसी चीज की पैदावार नही कर रहे है, या अगर आपका व्यापार किसी बात के पैदावार को बढावा देने के लिये नही है तो इसे एक इमानदार व्यापार या इमानदार रोजगार नही कहा जा सकता। बल्कि इसे रोजगार ही नही कहा जा सकता। यह सरासर लूट है, डकैती है और हर्षद इसे कर रहा है और सवाल हम से पूछ रहा है, इस देश की जनता से पूछ रहा है कि क्या इस देश में उसे रोटी का हक नही है? क्या इस देश में उसे रोजगार करने का हक नही है? भई, रोजगार करने का हक तो था, अगर तुम्हें रोजगार करना होता। हर सामान्य आदमी इस बात को जानता है कि, इस देश में ऐसा कोई रोजगार, ऐसा कोई व्यापार, ऐसा कोई पैदावार, ऐसी कोई इंडस्ट्री, अभी तक नही पैदा हुई जिसमें एक आदमी चार या छः वर्षों में ही इतने पैसे कमा ले कि उसके पास बैंक के सेव्हिंग अकाउंट में इकट्ठे निकालने के लिये ८० लाख रुपये से भी ज्यादा रुपये पडे रहते है। जरा सोचिए, एक परफ तो सामान्य आदमी है जो अगर बैंक में १००० रुपये जमा हो जाते है तो सोचता है कि, चलो इसकी क़क़्ङ बना ली जाए। दूसरी तरफ हर्षद मेहता जैसा आदमी है जो अपने आदमी को बैंक में दो चैको के साथ भेजता है। इसमें से एक चैक है ८० लाख का और दूसरा चैक है कोरा कि चाहे उसमे जो रकम लिखवा लो। इसके अलावा हर्षद के घर में १५ लाख रुपये ऐसे ही फालतू पडे थे। और वो भी वह दिल्ली ले जा सका। इसके अलावा उसके उसके दूसरे बैंक के
सेव्हिंग में पैसे यूही पडे हुये थे और उसमें से उसने तीस लाख रुपये निकाले। फिर वह जाता है दिल्ली वहाँ भी यूही सेव्हिंग बैंक में उसके पैसे पडे हुये हैं, वहाँ से वह निकालता है ४५ लाख। इन आकडो को देखिए और बताइये अपने दिमाग पर हाथ रखकर और दिल पर हाथ रखकर कि इस देश में ऐसा कौन सा इमानदार व्यापार है, जो आप और हम जानते है, जिसको करने से इतने पैसे मिलते हो कि, आप अपने घर में इतनी कैश इकठ्ठी रखे और आप अपनी बैंक कि सेव्हिंग अकाउंट में इतनी कैश इकट्ठी पडी रहने दें। अगर हर्षद का यह कहना सच है कि, वह श्री नरसिंह राव से मिला, उसने श्री राव को एक करोड रुपये दिये और श्री नरसिंह राव ने उसकी बाते आंनदपूर्वक सुन ली और उससे कहा कि, आप आइए, और दोबारा मुलाकात किजिए। हम अपने अर्थमंत्री से आपको मिलवायेंगे इत्यादि तो इस पूरे काण्ड में मेरी निगाह में श्री राव की सबसे बडी गलती यह नही है की, उन्होनें एक करोड रुपये लिये। यह भी नही है कि उन्होने हर्षद जैसे आदमी को मिलने के लिए मौका दिया। उनकी सबसे बडी गलती यह थी, कि जब हर्षद ने उनसे कहा की कैसे कम ही समय में पैसे बनाये जाते है तो उसी समय श्री राव की समझ में आना चाहिए था कि यह इमानदारी के रास्ते की बात नही कर रहा । अगर हमारे देश का प्रधानमंत्री इस बात को नही समझ सकता है तो हमारी राजनिति, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा समाज अवश्यमेव डूबेगा। हम आज श्री रीव के प्रति सहानुभूति रखे या न रखे यह बात अलाहिदा है। लेकिन हमें यह अच्छी तरह से समझना चाहिए कि इस पूरे काण्ड में अगर उनसे कई गलतियां हुई है तो सबसे बडी गलती कहा हुई । अगर इस गलती को हम गलती नही कहेंगे तो हम भी अपनी जिम्मेदारी से नही बच सकते और यदि कुछ आशा इस देश के बचने की है तो वह इसी बात पर निर्भर करती हैं, कि हम में से कितने व्यक्ति इस गलती को गलती कहकर पहचान सकते हैं।

दिनांक : २९-०६-२००५


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