शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

हिंदी बरकरार रखने के लिये संगणक

हिंदी बरकरार रखने के लिये संगणक
published in Nagari Sangam of Nagari Lipi Parishad year 29 vol114 April-June 2007
बिना तंत्रज्ञान विकास के कोई देश, समाज या भाषा आगे नहीं आ सकते। हिंदी बरकरार रखने के लिये भी संगणक का माध्यम अत्यावश्यक है।
सरकारी कार्यालयों में नई पीढ़ी पूर्णतया संगणक प्रशिक्षित है और संगणक सुविधाओं का लाभ भी ले रही है। लेकिन केवल अंग्रेजी के माध्यम से। हिंदी माध्यम से अत्यल्प जुड़ाव है।
कारण यह कि संगणक सुविधाएँ हिंदी में एक प्रतिशत भी विकसित नही हैं।
इसका कारण यह कि हिंदी में संगणक सुविधा का विकास केवल सॉफ्टवेयर तक सामित रहा हैं जब कि पूरे विकास के लिये सॉफ्टवेयर को ऑपरेटिंग सिस्टम (ओ. एस्‌.) के साथ इंटिग्रेट करना आवश्यक होता है।
हिंदी संगणक विकास करने वालों में में सर्वप्रमुख है सीडैक जो सरकारी संस्था होने के कारण उसे संसाधनों की कोई कमी नहीं हैं।
सीडैक ने कई अच्छे संगणक सॉफ्टवेयर्स विकसित किये हैं लेकिन वे कस्टमर की आकांक्षा पर पचास प्रतिशत से अधिक खरे नहीं उतरते क्योंकि उन्हें ओएस से इंटिग्रेट नहीं किया गया है। और न ही कस्टमर के प्रश्नों का समाधान ढूँढने का प्रयास हुआ है।
सीडॅक या अन्य विकासक के दावे को कबूलते हुए भारी खर्च पर सरकार ने हिंदी के सॉफ्टवेयर खरीद लिये है लेकिन उनकी उपयोगिता परखने का या बढ़ाने का कोई कार्यक्रम सरकार के पास नहीं है। उदाहरण स्वरुप देखें अनुलग्नक - १।
सीडॅक के सभी सॉफ्टवेयर महंगे बना दिये गये हैं जिससे उनके खरीदार या तो नहीं के बराबर हैं या ऐसे सरकारी कार्यालय हैं जहाँ पैसे का व्यय न तो महत्व रखता है ना कोई इस पर सवाल उठाता है। कदाचित जो सवाल उठाये जाते हैं उन्हें राजभाषा या सीडॅक से कोई उत्तर या समाधान नहीं दिया जाता।
आधे अधूरे उपयोग वाले सॉफ्टवेयर को कार्यालय में लगाकर उनका आग्रह करने से समय का अपव्यय होता है क्योंकि सरकारी काम व टिप्पणियाँ दीर्घकालीन और विभिन्न उपयोगों के लिये होती हैं। ऐसे में हिंदी सॉफ्टवेयर के साथ किये गए काम को बार बार करना पड़ता है।

उपाय
यह जाँचा जाए कि जिन सरकारी कार्यालयों में हिंदी सॉफ्टवेयर लगे उनमें से कितनों के लिये कंज्यूमर रिस्पान्स माँगा गया या उनकी दिक्कतों को समझा गया और उसमें से कितनों को सुधारा गया।
पहले बायोस और ओएस दोनों को modify किये बगैर ओएस को विकसित करना संभव नहीं था Bios औरú OS integral थे। वैसी हालत में Bios के बगैर हिंदी ग््रच् बनाना बेमानी था और Bios modification में कई व्यवहारिक दिक्कतें थीं। अब Bios को संस्कारित किये बगैर को OS बदला जा सकता है।

लेकिन वर्तमान में OS development बड़ी scale की प्रक्रिया बन गई है। अतएव भारत में सरकारी कार्यालयों के अनुकूल दो OS हैं - MS तथा Linux.ºाीडैक अभी तक MS पर आधारित है। इसमें linux आधारित करने पर फायदेमंद रहेगा क्योंकि -
(ठ्ठ) Linux एक open system हैं। इसमें होने वाले हर बदलाव को तथा हर improvement को Public Domain में रखा जाता है ताकि उपभोक्ता इसमें अपनी आवश्यकतानुसार अगला development
कर सके। ऐसा नया development भी public domain में रखा जाता है। इस प्रकार उपभोक्ताओं के परामर्श और participation से ही Linux system विकसित हुई है। सीडॅक ने अपनी investment का हवाला देकर Linux को इसलिये ठुकराया है कि Public Domain में उनके सॉफ्टवेयर free to all हो जायेंगे और उनका income generation रूक जायेगा।

सरकार को यह नीति तय करनी चाहिए कि चूँकि सीडैक एक सरकारी संस्था है अतः income generation की परवाह किये बगैर उनके software को public domain में डाला जाय।
वर्तमान में संगणक शिक्षा के बिना शिक्षा भी अधूरी है। ऐसी हालत में चीन और भारत के ये आकड़े क्या कहते हैं -
चीन भारत
literacy ७५% ६५%
अंग्रेजी जानने वाले १०% ४०%
संगणक पर काम करने वाले ७०% २५%

इन आकड़ों में शायद थोड़ा परिवर्तन हो लेकिन ये trend दर्शाते हैं और बताते हैं' कि भारत में संगणक को अग्रेंजी आधारित रखने के कारण एक ओर शिक्षित व्यक्ति भी अग्रेंजी न जाने तो संगणक ज्ञान से वंचित रहेगा। दूसरी ओर जितना ही वह संगणक के करीब जायगा उतना ही उसे हिंदी या अपनी मातृभाषा से दूर रहना पड़ेगा। लेकिन चीन में संगणक चीनी भाषा पर आधरित हैं जिस कारण से अंग्रेजी न जानने पर भी उनकी भावी पीढ़ी आधुनिक ज्ञान को अपनी मातृभाषा के माध्यम से पा सकती हैं। यही कारण है कि चीन की उत्पादकता भारत की अपेक्षा कहीं अधिक है।
सीडॅक द्वारा विकसित कतिपय सॉफ्टवेयरों की चर्चा यहाँ औचित्यपूर्ण हैं।
पहला है leap office - खासकर उसमें विकसित inscript keyboard :-
पूरी तरह भारतीय वर्णमाला पर आधारित और सभी भारतीय लिपियों में तथा वर्णाक्षरों की एकात्मता
बनाये रखने वाला यह key board निःसंदेह भारतीय भाषाओं लिये बने तमाम की बोर्डों से अधिक सहज सरल और ''बीस मिनट में फटाफट' सीखने के लिये सर्वोत्तम है। सभी भारतीय भाषाओं के लिये एक वर्णाक्षर एक ही कुंजी का principle इसमें है और वह कुंजियाँ भी ऐसी arranged की हैं जिन्हें समझना बहुत ही आसान है। लेकिन आज inscript की बोर्ड और लीप प्रणाली की उपयोगिता केवल दस प्रतिशत है । आज इसकी कीमत है दस से पंद्रह हजार रूपये और कितनी गैरसरकारी संस्थाएँ इसे खरीदती हैं यह जानकारी eye opener होगी।

इसमें स्थिति में सुधार के उपाय -
1.a) कीमत को दस हजार से घटाकर मुफ्त या पांच सौ तक लाया जाय।
१.ड) leap office के sale figures की जाँच की जाय ताकि दुनियां को पता चले कि वह कितना कम बिका है।
१.ड़) सरकार सीडॅक को एक मुश्त development change देकर लीप ऑफिस प्रणाली खरीद ले और मुफ्त बांटे। इसके लिये किसी oil company को भी कहा जा सकता है जिनका profit १०००० करोड़ रूपये के range में होता है।
यह सब करने पर उपयोगिता होगी पचास प्रतिशत।


इसके बजाय यदि इसे Limix सिस्टम में Public Domain में डाला जाय चो इसकी उपयोगिता होगी सौ प्रतिशत। सीडॅक द्वारा विकसित पॅकेज लीला जो अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिये बना है। इसकी उपयोगिता दो तरह से जांचनी होगी -

ऋ.१ भारतीय भाषा से भारतीय भाषा के अनुवाद के लिये उपयोगिता ५%
ऋ.२ भारतीय भाषा से अंग्रेजी अनुवाद के लिये १०%
ए-१ अंग्रेजी से भारतीय भाषा में अनुवाद के लिए ५०%
यहाँ केवल ए-१ की चर्चा प्रस्तुत है। सीडैक की ओर से कहा जाता है कि "मन्त्र" के द्वारा शब्द से शब्द का नहीं बल्कि lexical tree से lexical tree अर्थात्‌ वाक्यांश से वाक्यांश का अनुवाद किया जाता है।
सबसे पहले तो सीडैक को बधाई देनी पडेगी कि जब संगणक की दुनियाँ में भारतीय भाषाओं के लिए अनुवाद जैसा कुछ भी नहीं था, तब उन्होंने यह पॅकेज विकसित किया। कम से कम पचास प्रतिशत काम तो इससे हो ही जायेंगे। खासकर आज जब अंग्रेजी में ऐसा पॅकेज आ गया है जिसकी मार्फत हाथ से लिखी गई अंग्रेजी इबारत को पढ़ और समझ कर संगणक उसे टाईप-रिटन अंग्रेजी में convert कर रहा है। ऐसी अंग्रेजी इबारत से भारतीय भाषाओं में अनुवाद की संभावना के कारण बँकों को और सरकारी दफ्तरों की अंग्रेजी टिप्पणियों को बाद में हिंदी में उतार लेने की सुविधा उत्पन्न हो गई है। फिर भी उपयोगिता पचास प्रतिशत से अधिक नही है।
जब कि इसे आसानी से बढाया जा सकता है। तरीका फिर वही है। lexical tree to lexical tree के अनुवाद के लिये जो भी coding सीडैक ने की है असे यदि public domain में डाला जाये और वह linux OS में इस्तेमाल होने लगे तो जो भी व्यक्ति अलग तरह से अनुवाद करना चाहता हो वह इस coding की मदद से ऐसा कर सकेगा। इस coding से भारतीय भाषाएँ accessible होंगी अतः कोई अन्य बुद्धिमान और संगणक-प्रवीण व्यक्ति भारतीय भाषा से भारतीय भाषा तक या भारतीय भाषा से सीधे जापानी, चीनी, फ्रांसिसी, जर्मन इत्यादि भाषाओं तक पहुँच सकेगा। इस प्रकार दुनियाँ के अन्य देशों तक पहुँचने के लिए intermediary language के रूप में अंग्रेजी की आवश्यकता नही रहेगी। इससे विश्र्व बाजार में और विश्र्व राजनीति में भी भारत की साख बढेगी।
सारांश में चार मुद्दों पर सरकार को ठोस नीति और कार्यक्रम हाथ में लेने पडेंगे -
१) सीडैक द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर मुफ्त उपलब्ध कराये जायें।
२)संगणक बेचने वाली कंपनियों पर निर्बंध हो कि वे भारतीय भाषा सॉफ्टवेयर के बगैर संगणक न बेचें।
३) सीडैक सहित पहले भी जितने डेव्हलपर्स ने हिंदी सॉफ्टवेयर बनाये और बेचे हैं और जो आज भी लोगों के संगणकों में बिना improvement की संभावना के पडे हुए हैं, उनकी coding को open करके public domain में डाला जाये ताकि लोग linux OS platform के माध्यम से उनका उपयोग कर सकें। और एक तरह के हिंदी सॉफ्टवेयर में किया गया काम दूसरे सॉफ्टवेयर में भी काम आ सके। इस प्रकार पिठले दस - बीस वर्षों से लोगों का जमा किया data बचाया जा सकता है।
४)राजभाषा विभाग सभी विभागों में हिंदी में होनेवाले कामकाज के विषय में संगणक संबंधित कठिनाइयों का feed back लेता रहे और उन कठिनाइयों को निरस्त करने का प्रयास करे।
५)अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आज भी देवनागरी वर्णमाला हर संगणक पर उपलब्ध नही है जबकि चायनीज और अरेबिक वर्णमालाएँ उपलब्ध हैं। इसका उत्तर और इलाज पाने के प्रयास हों।
६)MS office के (१) Excel बनाना (३) Power point जैसे कार्यक्रम, (४) ई मेल और (५) वेब पेज बनाने के लिये सरल कार्यक्रम, (६) ऍक्रोबॅट रीडर जैसे कार्यक्रम के साथ हिंदी का इंटिग्रेशन, (७) ई मेल को डाऊन लोड करने के बाद उससे सीधे भारतीय लिपियों में वर्ड फाईल बनाना Sorting अनुक्रम भारतीय वर्णमाला के अनुसार ये आठ कार्यक्रम जब तक सरलता से कार्यालयों में संपन्न नही हो पाते तब तक राजभाषा की प्रतिष्ठा के लिये जो भी किया जायेगा वह निष्फल रहेगा। (८) हिंदी में लिपिबद्ध पन्नों को चित्र या jpeg file से पढ़कर उससे हिंदी लिपि में वर्ड फाईल बनाना।
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7 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

आपने बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं. यदि लीप ऑफिस जैसा उत्पाद सरकारी संस्था बगैर लाभ के या मुफ्त में जारी करती तो आज भारतीय भाषाई कम्प्यूटिंग की दुनिया अलग ही होती.

पर, ये बात अब अच्छी है कि सरकारी संस्थाएँ गौण हो गई हैं. व्यक्तिगत प्रयासों, संगठनों और निजी डेवलपरों द्वारा तथा ओपन सोर्स में भारतीय भाषाई कम्प्यूटिंग में इतना काम हो चुका है कि अब सीडॅक गौण हो चला है और इनके उत्पाद आउटडेटेड हो गए हैं!

विनीत कुमार ने कहा…

मैडम सवाल तो आपने वाकई बहुक सही उठाया है लेकिन गंगाजली उठाकर हिन्दी बोलने में बड़ा कष्ट है ऐर नुकसान भी...बहुत टिपिकल लिखा है आपने और लोगों का हिन्दी से छिटकने का एक बड़ा कारण ये भी रहा है।

ePandit ने कहा…

बहुत ही अच्छा लेख लीना जी। इसे पढ़कर आपका परिचय जानने की उत्सुकता हो आई।

सीडैक के उत्पादों का मुफ्त अथवा ओपन सोर्स न होना ही उन्हें आम हिन्दी प्रयोक्ताओं के लिए अनुपयुक्त बना देता है। वैसे तो सीडैक के उत्पाद ओपन सोर्स होते तो अच्छा होता पर कम से कम मुफ्त तो हों, रही बात डैवलपमेण्ट कॉस्ट की तो उसे सरकार अन्य तरीकों से वसूल सकती है।

मुझे तो आज तक सीडैक के दो ही उत्पाद अच्छे लगे हैं इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड तथा ISM. इनमें से ISM बहुत ही उपयोगी तन्त्र है लेकिन इसके मुफ्त न होने से आम जनता इससे वञ्चित है जिससे लोगों को डीटीपी कार्यों के लिए आज भी जबरन आउटडेटिड रेमिंगटन टाइपिंग प्रयोग करनी पड़ती है

खैर अब वि्ण्डोज एक्सपी तथा विस्ता आदि में उन्नत इण्डिक सपोर्ट उपलब्ध होने तथा इनपुट मैथड एडीटरों के विकास से सीडैक के बहुत से उत्पाद अप्रासंगिक हो गए हैं। IndicIME जैसे कीबोर्ड ड्राइवरों की मदद से हम MS Office या फिर मुफ्त Open Office आदि में मनचाहा काम कर सकते हैं।

हिन्दी कम्प्यूटिंग की दशा-दिशा पर कुछ समय पहले मैंने भी चर्चा की थी, पढ़कर अपनी राय दें।

उन्मुक्त ने कहा…

हम यदि लिनेक्स को पूरी तरह से अपनाये तो शायद हिन्दी का ज्यादा उत्थान हो।
सीडैक अक्सर सरकारी तरह से काम करता है जो कि वास्तविकता से दूर है।
हिन्दी के टाईपिस्ट रेमिंगटन की-बोर्ड से अभ्यस्त हैं पर वे इनंस्क्रिप्ट की बोर्ड की बात करते हैं। यह बात अव्यवहारिक है।
लिनेक्स में यूनिकोड हिन्दी के लिये कुछ समय पहले ही रेमिंगटन की-बोर्ड आ पाया जिससे काफी मुश्किल पड़ी।

लीना मेहेंदळे ने कहा…

Thanks for all the comments. But.....Take this comment for example. On my computer, when ISM is loaded Hindi is disabled for direct typing. Or,
Try signing up for Google
AdSense, it has arabic chinese hibrew...... and so on but not hindi. We are so proud that outer world is giving us respect.---- cudos to our foreign policy.... bla bla bla. But as a country we dont demand from computer sellers even when we are giving them a huge market.

Why not start asking questions under RTI Act. Ok, In that I am bound due to my official post.

हरिराम ने कहा…

लीना जी,
आपका लेख ठोस तथा महत्त्वपूर्ण मुद्दों से परिपूर्ण है। आपने लिखा-- "सीडैक की ओर से कहा जाता है कि लीला के द्वारा शब्द से शब्द का नहीं बल्कि lexical tree से lexical tree अर्थात्‌ वाक्यांश से वाक्यांश का अनुवाद किया जाता है।" कृपया इसमें सुधार करें-- "लीला" शब्द को बदलकर "मन्त्र" करें। लीला हिन्दी स्वशिक्षण पैकेज हैं। मन्त्र (Machine Assisted Translation Tool) अंग्रेजी हिन्दी अनुवादक पैकेज है।

लीना मेहेंदळे ने कहा…

Thanks Hariramji, you may like to read on my blog जनता की राय, following 2 articles

हिन्दी में शपथ - जन. १९ अक्टूबर १९९९
पचास साल बाद हिन्दी - जन. ३ फरवरी २०००