शनिवार, 15 दिसंबर 2007

कथा अधूरी -- मन ना जाने मन को

मन ना जाने मन को
नन्हा पौधा बहुत दूर कहीं पर था । सच पूछो तो वह पौधा भी नही - केवल एक बीज था । या, बीज भी नही, बस एक खयाल! ना, वह भी नही ! कुछ भी नही था। बस एक अनाम सा अस्तित्व बोध, कि कुछ है !
फिर कैसे वह धीरे धीरे तुम्हारे पास आ गया ? अमूर्त से मूर्त बन कर ! अनाम से नामधारी बनकर ! क्यों तुमने उसे पुकारा ? उसे छुआ? बाँहो में भरकर उसकी सांवली, कोमल पत्त्िायों पर अपने होंठ टेक दिये ?
कहीं से तुमने मिट्टी जमा की, कहीं से गमला और कहीं से पानी! फिर पौधे को उसमें जमा दिया और गमला घर ले आयें । पडा रहेगा यहाँ अपनी बाल्कनी में, तुमने मनोरमा से कहा!
इसे रोज रोज पानी कौन डालेगा? मुझसे नहीं होगा वो सब! मनोरमा ने कहा।
'चिंता न करो। मैं डाल दूँगा। '
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कई दिन बीते। तुम विदेश से आकर अपनी नोकरीमें उलझ गये थे। रोज सुबह देर से उठना और भाग दौड करते हुए आफिस पहुचना! वापसी में कभी बच्चों को लेना, तो कभी सब्जी! कभी स्कूटर सर्विसिंग तो कभी शेअर्स! अक्सर दोस्तोंके साथ बैठकर बियर! रोज रात देर से सोना - रोज थकान लेकर जागना ।
एक दिन अचानक तुम जल्दी उठ गये। बाल्कनी में आए। पौधे को देखा, असीसा। वाह! अभी टिका हुआ है, मैं तो पानी ही नही दे पाया इतने दिन! माफ करना यार! तुमने पूरी बालटी गमले में उलट दी - आधा पानी जमीन पर !
एक दिन नाश्ते पर मनोरमा ने कहा -' आज जल्दी घर आना । लखनऊ वाले फूफाजी के .यहाँ शादी में जाना है। और वह तिवारी के बेटे के जनम दिन पर भी तो जाना था ।'
'वह परसों है! क्या बात है कि तिवारी के घर जाने के लिये इतने उतावले हो!
'भाई, मेरा पुराना दोस्त है, हम दोनों ने एक साथ ही तो नौकरी शुरू की थी।'
'यह क्यों नहीं कहते कि उसकी बीबी बडी खूबसूरत है। और तुम उसे घाल डालना चाहते हो ।
'कैसी बातें करती हो? जरा सोचो, कभी सुन लिया तो बेचारे तिवारी पर क्या गुजरेगी!'
तुम उठकर बाल्कनी में चले आये। बहुत दिन बाद आये। पौधा हवा में झूले झूल रहा था। तुमने कहा - आज समय नही है। मुझे तुरंत आफिस पहुँचना है। पौधे ने सोचा कोई बात नही, इतने दिन तुम नहीं दिखे, तो मैंने तो कुछ नही पूछा! पर तुमने शायद वह नही सुना। तुम वापस चल चुके थे।
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अजीब है तुम्हारा आफिस भी । या शायद सभी आफिस ऐसेही होते है। काम करने वाले के सिर पर चार गुने काम और न करनेवाले को आराम का इनाम! पर तुम अपने काम में मस्त हो। दुसरे काम करं या न करें, तुम करोगे। देर रात तक आफिस में बैठोगे। ब्रिज और ओवर ब्रिजेस के ड्राइंग बनवाना, टेंडर शर्तों को तय करना, टेंडर्स मंगवाना, आडर्स निकालना, मशीनरी जाँचना, कन्सल्टंट लगवाना साइट इन्स्पेक्शन सारे काम तो एक ही तरह के, एक ही रूटीन के होते हैं। तुम्हें उनमें हर बार क्या नया दिख जाता है कि हर ब्रिज को नये नये ज्यूनियर इंजिनियर की तरह ध्यान से पढे बगैर तुम रह नहीं सकते? टेक्निकल किताबें मँगवाते रहते हो। मैं कहाँ का नया टेकनीक अपनामा जा रहा है, तुम्हें उसकी जानकारी होती है। फिर बास तुम्हें रोक लेते हैं - 'जरा बताना जो इस बारे में!' वह खुद क्यों नहीं कुछ पढते?
न पढें, मुझे पढना अच्छा लगता है, पढता हूँ - इसीसे साइट इन्स्पेक्शन भी करता हूँ - क्या पढा था और वह जमीन पर कैसे उतरा है।
'फिर तुम्हें प्रमोशन क्यों नहीं मिल रही?
बास भी न जाने कहाँ कहाँ से अपने चमचों को उठा लाते हैं और उन्हीं को प्रमोशन देते हैं। मुझे भी दे सकते थे। मेरे और कई कलिग्स को दे सकते थे, पर नहीं दिया। हमारा मंत्री भी वैसा ही है। तभी तो कहता हूँ, सरकार में काम करने वाले को काम है और न करने वाले को इनाम है।
'फिर तुम काम क्यों करतो हो? '
'वह मेरी आदत है। क्या काम न करूँ?'
'नही, तुम उस तरह की बेईमानी में नहीं जी सकोगे।'
फिर मेरे काम की इतनी जाँच और जिद्द क्यों?
'यों ही, जाओ तुम अपना काम करते रहो।'
'आज एक अमरीकन एक्सपर्ट अपना प्रेझेंटेशन दे रहा है। मुझे जाना है उसे सुनने के लिये। रात देर हो जायेगी। घर पहुँचूँगा तो थक चुका हूँगा।'
और तुम्हारे उस पौधे का क्या हुआ जिसके बारे में बता रहे थे?
अरे, उसे तो देखा ही नहीं - बहुत दिन हो गये। पता नहीं किस जात का है कि बिना पानी दिये भी इतने दिन जी लेता है! अच्छा मिल गया था।
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मनोरमा ने नौकरी छोडने का फैसला किया। तुमने समझाना चाहा, देखो,पंकज और नन्दिनी वैसे भी होस्टल में हैं, रहा गुड्डू! तुम्हारी नौकरी के पैसे की जरूरत तो हमें कभी नहीं थी। फिर भी तुम्हारा मन लगा रहेगा लेकिन मनोरमा अपनी जिद में किसी की नहीं सुनती।
तुम सिगरेट का डब्बा उठाकर बाल्कनी में आ गये। यंत्रचलित सा पौधे के पास आ खडे हुए, फिर सिगरेट सुलगा दी। एक अजीब अनमनेपन में भर कर पौधे को सहलाते लगे। उसने धीरे से कहा - सिगरेट से पौधोंको तकलिफ होती है। 'अच्छा', तुमने चुटकी लेकर कहा - तुम्हारी दो नई डालियाँ निकलेगी तब मैं छोड दूँगा। 'तुम अपनी खातिर भी तो छोड सकते हो', पौधा मचलने लगा। और तुम भी अपनी ही खातिर डालियाँ फैल सकते हो। पौधे ने हार मान ली। फिर झूमने लगा।
बच्चे एक से एक अच्छा रिझल्ट कर फुर्र से उड रहे हैं। नंदिनी ब्याह रचा कर और पंकज इंजिनियरिंग के बाद अमेरिका जा चुके हैं। छोटा गुड्डू भी चेन्नई में पढाई कर रहा है। तुमने नई कार खरेदी ली है। एक प्रमोशन मिल चुका है, अगला भी तय है, बस, कुछ प्रोसिजाल डिले है। अब आफिस में तुम और भी डूब गये हो।
अगली बार तुम पानी डालने लगे तो पौधे की दो नन्हीं नन्हीं टहनियाँ निकल आई थी।
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अपने सिगरेट क्यों छोडी? मनोरमा ने पूछा। यू लुक्ड व्हेरी स्मार्ट व्हाईल स्मोकिंग!
आई डोण्ट वाम्ट गुड्डू टू पिक अप धिस हॅबिट!
ओके, अपनी सूटकेस पॅक कर लो शिमला के लिये। कल सुबह हमें जल्दी निकलना है। लेकिन तुम तो आफिस से आज भी देर से ही आओगे। और मेरी पॅकिंग तुम्हें पसंद नहीं आती। और देखो, आज रात मैं खाना नहीं बनाऊँगी। तुम कलेवा से कुछ लेते आना।
वहीं चलेंगे, मैं आज आफिस से जल्दी निकल आऊँगा। या ऐसा करो, मैं ड्राइवर भेज देता हूँ। तुम और गुड्डू पहुँच जाना। मैं मिश्रा से लिफ्ट लेकर आ जाऊँगा। आठ बजे, राइट?
क्या आजकल मिश्रा की वाइफ के साथ कुछ चल रहा है?
'मनोरमा, प्लीज!'
तुम सिगरेट भी गुड्डू की वजह से नहीं छोड रहे। कोई और बात है।
ठीक कहती हो, अपनी खातिर छोड रहा हूँ। अपने हेल्थ की खातिर!
हेल्थ का खयाल है तो फिर अपनी अम्बिशन्स को भी कम करो।
वो भी कर लूँगा, अब मुझे फटाफट दो स्लाइस टोस्ट मिलेगा नाश्ते के लिये?
मनोरमा से बहस से बचना हो, तो उसे खाने पीने के किसी काम में उलझा देना एक अच्छा रास्ता है।
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'मैं उड जाऊँ? एक दिन पौधे ने पूछा!
तुम हँसे। पागल, पौधे कभी उडते हैं क्या?'
'मैं उड जाना चाहता हूँ।'
तुमने चौंककर पौधे को देखा । क्यों? बडी देर तक कोई उत्तर नहीं आया तो तुमने कहा - पेड की जडें मिट्टी में ही रहनी चाहियें, वरना वह कैसे जिएगा? पौधा फिर भी चुप! तुमने मन ही मन फैसला किया - इसे रोज सुबह शाम पानी दूँगा, लकिन फैसला उस शाम तक ही टिक पाया। पौधा भी तुम्हारे दिये पानी पर कहाँ जी रहा था?
अचानक तुम्हारी आफिस की रुटिन बदल गई। नॅशनल हायवेज पर जहाँ जहाँ रेल्वे ओवर ब्रिज या क्रासिंग फ्लाई ओवर बनने थे, सबका एक मास्टर प्लान बनाने का जिम्मा तुम्हें दिया गया। अब रात दस बजे तक आफिस में बैठना एक आम बात हो गई। कई बरसों बाद तुम्हें मौका मिला था अपनी प्रोफेशनल योग्यता दिखाने का। तुमने अपने कलिग्स से कहा - बाद में कभी भी इन रास्तों पर से गुजरूँगा तो यही सारे स्पाटस्‌ मेरी पहचान बनेंगे। जिंदगी जैसे कंपार्टमेंट्स में बँट गई। अम्बिशन नंबर एक - आफिस की नई जिम्मेदारी पूरा करना। अम्बिशन नंबर दो - मनोरमा के साथ दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच समय गुजारना।
मनोरमा मूडी है। पार्टियों का शौक उसे भी है। खासकर वहाँ तुमपर इतराना। लेकिन अचानक कोई औरत उसके दिमाग में बैठ जाती है और वह कल्पना करने लगती है कि तुम्हारा और उसका कोई संबंध बन रहा है। फिर घर आकर तुम्हें उलाहने देना और खुद डिप्रेस्ड हो जाना। हर बार एक नये उत्साह से तुम पार्टीमें जाते हो। कुछ तो ठीक रहती हैं पर कई बार वे मनोरमा के डिप्रेशन का कारण बन जाती हैं। फिर उसे कहीं बाहर ले जाना पडता है। अक्सर टूरिंग में वह साथ आने लगी है। चलो, आफिस का काम बढा है तो यह फायदा भी हुआ है कि मनोरमा को घुमाने ले जा सको।
बच्चे एक एक कर पढाई के लिये बाहर जा चुके है। अब केवल आफिस, दोस्त-रिश्तेदार और मनोरमा! जिंदगी भरी-पूटी है, सार्थक है। लेकिन नन्हे पौधे के सामने आओ तो लगता है जिन्दगी का कुछ अलग ही अर्थ है - शायद कोई अलग ही रास्ता है - अभी वह नही दिखेगा। एक धुँध सी पडी है उसपर!
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पौधे ने उसे एक दिन कहानी सुनाई। एक पंछी था। वह उड कर चाँद तक पहुँचना चाहता था। सब उसकी बात पर हँसते। रोज रात जब सारे पंछी सो जाते तो वह उठता और चाँद की तरफ चल पडता। चक्कर लगाता उसके चारों ओर। अपने पंखों को समेट कर ऊँचा, और ऊँचा उठता चला जाता था - फिर थकान में चूर होकर नीचे आ जाता था। कभी कभी ऊँचाई पर पहुँच कर भी उसके पंखों में इतनी हिम्मत होती थी कि वो खुल जाते । फिर पंछी चाँद के बिलकुल पास चक्कर लगा सकता था और फिर एक बार पंख समेट कर और ऊपर जा सकता था।
'मैंने उसे कई बार देखा है।' पौधे ने कहा - 'वह जरूर चाँद पर पहुँच जायेगा।'
'ओ! क्या इसी लिये तुम्हारे दिमाग में उडने की बात आई?'
'नही, इस लिये नहीं !'
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एक दिन पौधेने उसे एक तितली की कहानी सुनाई। वह रानी तितली भी - मतलब जैसे मधुमख्खियों में या चींटीयों में रानी होती हैं - वैसी नही । लेकिन उसका स्वभाव रानियों जैसा था। वह हुकुमत करना भी जानती थी और उदार मन से किसी को कुछ भी दे सकती थी। उसने कई फूलों के उपर अपने पैरों से एक अदृश्य जाल सा बनाया था। फिर रात में वह जाल के तारों पर नाचती थी। नाचते नाचते उसके पंख झड जाते और नए निकलते। उसके पास सौ जोडियाँ पंख थे। जिस रात नाच की गति तेज हो जाएगी और निन्यान्नवे जोडियाँ झड कर आखिरी पंख बाहर आएंगे, उस रात तितली सबके लिये सुहरे पल बाँट सकेगी। तुम भी उससे सुनहरे पल ले सकोगे।
हँसते हँसते तुम्हारा बुरा हाल हो गया। क्या बेवकुफी भरी कहानियाँ गढते हो, तुमने पौधे से कहा । मैं उड जाऊँ? पौधे ने अपनी साँस रोककर पूछा। नहीं, तुम मर जाओगे। तुमने अचानक पौधे की पत्त्िायों को चूम लिया।
याद है, बरसों पहले एक बार तुमने यहीं किया था। पौधे ने खिल कर कहा ।
'मै ऐसा और भी कर सकता हूँ, लेकिन . . . '
'कोई देखेगा तो कहेगा कि मैं पागल हूँ।'
पौधा गुमसुम हो गया। तुमने उसे बहुत छेडा, पर वह चुप ही रहा।
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इधर मनोरमा की तबियत कुछ ज्यादा खराब हो रही है। उसका शक्की मिजाज और डिप्रेशन दोनों ही बढ रहे हैं। पता नहीं क्यों वह मेरे बारे में ऐसा सोचती है?
यह शक्की स्वभाव कब से शुरू हुआ?
एकदम शुरू से ही ! शादी की रात ही उसने मुझसे कहा कि तुम इतने स्मार्ट,.हँडसम हो, तो ऐसा हो नहीं सकता कि तुमपर लडकियाँ न मरती हो।
तुमने क्या कहा था?
मैं हँस पडा था। देखो, कोई कहे कि तुम स्मार्ट और हँडसम हो तो आदमी पहले उसी बात को सोचता है और एक गरूर सा महसूस करता है। हालाँ कि उसकी दूसरी बात सच नही थी लेकिन मैंने उस पर ध्यान ही नही दिया - न उसका कोई प्रतिवाद किया। वैसे सच पूछो तो मनोरमा भी बहुत सुंदर थी। मुझसे कई गुनी सुंदर। मैं तो पहले दिन देखकर ही उससे प्यार करने लगा था।
और वह भी पहले ही दिनसे तुमसे प्यार करने लगी।
पता नहीं !
ऐसा क्यों कहते हो? वह तुम्हारे बच्चों की माँ है, घर बडी खूब सूरती से संभालती है, तुम्हारा साथ देती है, पार्टियों में तुम्हारी पत्नी होने का गरूर भी कितना दिखाती है।
क्या वही प्यार है?
फिर प्यार क्या है? जब तुम कहते हो कि तुम पहले ही दिन से उसे प्यार करने लगे थे। तो तुम्हारा मतलब क्या है? डेफिनिशन क्या हैं?
मैं इतना सब नही जानता। मैं तो अपना सब कुछ उसे दे देने के लिये तैयार था, दिया भी । लेकिन शायद उसके दिल में कोई रिझर्व्हेशन रहा, इसीसे वह मुझपर शक करती है।
उसे डाक्टर के पास ले जाओ।
वह नहीं जाती। मैंने सुझाया था। अण्टी डिप्रेशन की गोलियाँ भी अपने मन से ले लेती है।
वे गोलियाँ अच्छी नहीं। उन्हें बार बार लेना भी रिस्की है।
उसे यह भी पता है।
उसे डाक्टर के पास ले जाना जरूरी है। दॅट शषुड बी युवर फर्स्ट प्रायोरिटी।
लेकिन कैसे ले जाऊँ?
अपने प्यार का वास्ता देकर! आय थिंक तुम्हारी एक कमजोरी यह है कि तुम्हें जब जो बातें - कह देनी चाहियें, तुम कहते नही हो।
मैं सीखूँगा। थँक्स फार दि टिप !
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पौधे ने एक सीप की कहानी सुमाई। सीप के कीडे को पता होता है कि उसके आस पास का समुद्र, उसकी रेत और पानी के तलदृष्टी की घासफूल कैसी होती है। उसकी सीप की नक्काशी भी वह उसी प्रकार बना लेता है ताकि अपने परिवेश में सीप धुलमिल जाये, उभर कर न दिखे । इससे उसका खतरा टल जाता है। एक दिन एक सीप ने कहा कि वह दूर घूमने जायेगी और रास्ते में अपने रंग बदलते हुए जायेगी। रास्ते में सीप थकने लगी। एक तो रास्ते की थकन, दूसरे रंग बदलने की मेहनत। फिर वह एक चित्रकार के पास गई। उसने उसपर ब्रश फेरकर उसे बहुत बडा आकार दे दिया और उछाल कर बादलो में डाल दिया। तूम कभी बारिश के समय बादलों को देखना तो बडे सीप का आकार दिखेगा। ये वही सीप है।
तुम जो मुझे ये पंछियों, सीपों की कहानियाँ सुनाते हो, इनका क्या मतलब है? क्या तुम्हें ये पसंद नही हैं?
बहुत पसंद हैं, पता है तुम्हारे पंछियों, तितलियों या सीपीयों की बात सोचता हूँ तो एक नया उत्साह सा पाता हूँ।
कब सोचते हो?
काम करते हुए कई बार अचानक तुम्हारी कहानियों को सोचने लगता हूँ। मेरी दुनियाँ में तो आफिस के कागज, मनोरमा, बच्चे और पार्टिया ही थे। तुम्हारी दुनियाँ बहुत बडी है, गहरी है। उमंग दिलानेवाली है।
नेरी कहानियाँ तुम्हें अच्छी लगीं ये खुशी की बात है।
बेशक, मेरे लिये भी !
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अधूरा

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