सोलहवीं सदी ने अंगडाई ली। उसकी नजर पडी सह्याद्री के जंगल की एक बस्ती पर। सदी ने कहा-- आनेवाले दिनों में यहाँ कुछ नया होगा।
बस्ती से पूरब एक घना जंगल था। पश्चिम की तरफ थे खेत। वहाँ अधिकतर बाजरा, थोडी अरहर, कभी चना, कभी तिल उगाया जाता था। मेडों पर किसी ने आम, किसी ने इमली, किसी ने सागवान और किसी ने बबूल-नीम लगा रखे थे। लेकिन उन पर पूरी बस्ती का सांझा माना जाता था। जिसे घर में चटनी के लिये इमली चाहिये हो, रमई काका के मेंड से उठा लाये, जिसे नीम का दातुन करना हो, आगे पसीरा चाची के खेत में चला जाये। सब्जीयाँ और फूल खेत में नही उगाये जाते थे। बस्ती की हर घर के अगल बगल ये लगे हुए थे और उन पर भी गांव का सांझा माना जाता था।....
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published in july 2007 in Aksharparv, Raipur and included in my colletion of short stories man_na_jane_manko, published by Alokparv prakashan New Delhi
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